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प्रायोगिक दर्शन
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अ. १४ : नयवाद पएसो अधस्मपएसो आगासपएसो जीवपएसो का प्रदेश। यह कहो पांच प्रकार का प्रदेश। जैसे-धर्म का खंधपएसो।
प्रदेश, अधर्म का प्रदेश, आकाश का प्रदेश, जीव का
प्रदेश और स्कन्ध का प्रदेश। एवं वयंत ववहारं उज्जुसुओ भणति-जं भणसि व्यवहार नय के ऐसा कहने पर ऋजुसूत्र नय कहता पंचविहो पएसो, तं न भवइ।
है-तुम जो पांच प्रकार का प्रदेश कहते हो, उचित नहीं
कम्हा? जइ ते पंचविहो पएसो-एवं ते एक्केक्को पएसो पंचविहो–एवं ते पणवीसतिविहो पएसो भवइ, तं मा भणाहि-पंचविहो पएसो,भणाहि-भइयव्वो पएसो- सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय । आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो।
एवं वयंतं उज्जुसुयं संपइ सहो भणति-जं भणसि भइयव्वो पएसो, तं न भवइ। कम्हा? जइ ते भइयव्वो पएसो, एवं ते-धम्मपएसो वि-सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो।।
अधम्मपएसो वि-सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो। आगासपएसो वि-सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो।
जीवपएसो वि-सिय धम्मपएसो सिय अधम्म...पएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय
खंधपएसो। खंधपएसो वि-सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो। एवं ते अणवत्था भविस्सइ, तं मा भणाहि- भइयव्वो पएसो, भणाहि-धम्मे पएसे से पएसे धम्मे, अधम्मे पएसे से पएसे अधम्मे, आगासे पएसे से पएसे आगासे, जीवे पएसे से पएसे
किसलिए? यदि तुम्हारे मन में पांच प्रकार का प्रदेश है तो इस प्रकार प्रत्येक प्रदेश के पांच प्रकार होने पर वह प्रदेश पच्चीस प्रकार का होता है। इसलिए मत कहो-पांच प्रकार का प्रदेश। यह कहो-प्रदेश भाज्य (विकल्पनीय) है-स्यात् धर्म का प्रदेश है, स्यात् अधर्म का प्रदेश है, स्यात् आकाश का प्रदेश है, स्यात् जीव का प्रदेश है, स्यात् स्कन्ध का प्रदेश है।
ऋजुसूत्र के ऐसा कहने पर सम्प्रति शब्द नय कहता है-तुम जो कहते हो-प्रदेश भाज्य है, वह उचित नहीं है। किसलिए?
तुम्हारे मत में प्रदेश भाज्य है तो इस प्रकार धर्म का प्रदेश भी स्यात् धर्म का प्रदेश, स्यात् अधर्म का प्रदेश, स्यात् आकाश का प्रदेश, स्यात् जीव का प्रदेश, स्यात् स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है।
अधर्म का प्रदेश भी स्यात् धर्म का प्रदेश, स्यात् अधर्म का प्रदेश, स्यात् आकाश का प्रदेश, स्यात् जीव का प्रदेश, स्यात् स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है।
आकाश का प्रदेश भी स्यात् धर्म का प्रदेश, स्यात् अधर्म का प्रदेश, स्यात् आकाश का प्रदेश, स्यात् जीव का प्रदेश, स्यात् स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है।
जीव का प्रदेश भी स्यात् धर्म का प्रदेश, स्यात् अधर्म का प्रदेश, स्यात् आकाश का प्रदेश, स्यात् जीव का प्रदेश, स्यात् स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है।
स्कन्ध का प्रदेश भी स्यात् धर्म का प्रदेश, स्यात् - अधर्म का प्रदेश, स्यात् आकाश का प्रदेश, स्यात् जीव का प्रदेश, स्यात् स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है।
इस प्रकार अनवस्था हो जाएगी। इसलिए मत कहो-प्रदेश भाज्य है। यह कहो-जो धर्मात्मक प्रदेश है, वह प्रदेश धर्म है। जो अधर्मात्मक प्रदेश है, वह प्रदेश अधर्म है। जो आकाशात्मक प्रदेश है, वह प्रदेश आकाश