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________________ प्रायोगिक दर्शन अ.१४ : नयवाद संगहस्स चिओ मिओ मेज्जसमारूढो पत्थओ। धान्य से व्याप्त और पूरित होने पर मेय समारूढ़ होता है, इसलिए संग्रह नय उसे प्रस्थक मानता है। उज्जुसुयस्स पत्थओ वि पत्थओ, मेज्जं पि ऋजुसूत्र नय प्रस्थक को भी प्रस्थक मानता है और पत्थओ। मेय को भी प्रस्थक मानता है। तिण्हं सहनयाणं पत्थगाहिगारजाणओ पत्थओ, तीन शब्द नय प्रस्थक के अर्थाधिकार को जानने वाले जस्स वा वसेणं पत्थओ निप्फज्जइ। व्यक्ति को प्रस्थक मानते हैं। अथवा जिसके बल (प्रस्थकाधिकार को जानने वाले के उपयोग-चैतन्य-व्यापार) से प्रस्थक निष्पन्न होता है, वह प्रस्थक कहलाता है। वसति दृष्टांत २०.से किं तं वसहिदिट्टतेणं? वसति दृष्टांत क्या है? वसहिदिट्टतेणं-से जहानामए केइ पुरिसे कंचि वसति दृष्टांत-जैसे कोई पुरुष किसी पुरुष से कहता पुरिसं वएज्जा-कहिं भवं वससि? है-आप कहां रहते हैं? अविसुद्धो नेगमो भणति-लोगे वसामि। अविशुद्ध नैगम नय कहता है-लोक में रहता हूं। लोगे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-उड्ढलोए अहेलोए लोक के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं-ऊर्ध्वलोक, अधोलोक तिरियलोए, तेसु सव्वेसु भवं वससि? और तिर्यक् लोक। क्या आप उन सबमें रहते हैं ? विसुद्धो नेगमो भणति-तिरियलोए वसामि। विशुद्ध नैगम नय कहता है-तिर्यक् लोक में रहता हूं। तिरियलोए जंबुद्दीवाइया सयंभूरमणपज्जवसाणा तिर्यक्लोक में जंबूद्वीप से लेकर स्वयंभूरमण तक असंखेज्जा दीवसमुद्दा पण्णत्ता, तेसु सब्बेसु भवं असंख्य द्वीप-समुद्र हैं। क्या आप उन सबमें रहते हैं ? वससि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति-जंबुद्दीवे वसामि। विशुद्धतर नैगम नय कहता है-जम्बूद्वीप में रहता हूं। जंबुद्दीवे दस खेत्ता पण्णत्ता, तं जहा-भरहे एरवए जंबूद्वीप में दस क्षेत्र प्रज्ञप्त हैं-भरत, ऐरवत, हैमवत, हेमवए हेरण्णवए हरिवस्से रम्मगवस्से देवकुरा । हेरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यक्वर्ष, देवकुरु, उत्तरकुरु, पूर्वविदेह उत्तरकुरा पुव्वविदेहे अवरविदेहे, तेसु सव्वेसु भवं और अपरविदेह। क्या आप उन सबमें रहते हैं? . वससि? . विसुद्धतराओ नेगमो भणति-भरहे वसामि। विशुद्धतर नैगम नय कहता है-भरत में रहता हूं। भरहे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-दाहिणड्ढभरहे य भरत के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं-दक्षिणार्ध भरत और उत्तरड्ढभरहे य, तेसु सव्वेसु भवं वससि? उत्तरार्ध भरत। क्या उन दोनों में रहते हैं ? विसुद्धतराओ नेगमो भणति-दाहिणडढभरहे विशुद्धतर नैगम नय कहता है-दक्षिणार्ध भरत में वसामि। रहता हूं। दाहिणड्ढभरहे अणेगाई गामागर-नगर-खेड- दक्षिणार्ध भरत में अनेक ग्राम, आकर, नगर, खेड़, कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासम-संबाह-सण्णि- कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, संबाह और सन्निवेश वेसाई, तेसु सव्वेसु भवं वससि? हैं। क्या आप उन सबमें रहते हैं? विसुद्धतराओ नेगमो भणति-पाडलिपुत्ते वसामि। विशुद्धतर नैगम नय कहता है-पाटलिपुत्र में रहता हूं। पाडलिपुत्ते अणेगाइं गिहाई, तेसु सव्वेसु भवं पाटलिपुत्र में अनेक घर हैं, क्या आप उन सबमें वससि? रहते हैं? विसुद्धतराओ नेगमो भणति-देवदत्तस्स घरे विशुद्धतर नैगम नय कहता है-देवदत्त के घर में वसामि। रहता हूं।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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