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________________ आत्मा का दर्शन ६३० खण्ड-8 से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ-सिय सासए सिय असासए? गोयमा! दव्वट्ठयाए सासए। वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं . फासपज्जवेहिं असासए। से तेणठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-सिय सासए, सिय असासए। भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है परमाणु पुद्गल कथंचित् शाश्वत है, कथंचित् अशाश्वत है? गौतम! द्रव्य की अपेक्षा शाश्वत है। वर्णपर्यव, गंधपर्यव, रसपर्यव और स्पर्शपर्यव की अपेक्षा अशाश्वत है। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-परमाणु पुद्गल कथंचित् शाश्वत है, कथंचित् अशाश्वत है। नय के तीन दृष्टांत १८.से किं तं नयप्पमाणे? नयप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-पत्थगदिढ़तेणं, वसहिदिढ़तेणं, पएसदिळेंतेणं। नय प्रमाण क्या है? नय प्रमाण के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, यथा-प्रस्थक दृष्टांत, वसति दृष्टांत, प्रदेश दृष्टांत। प्रस्थक दृष्टांत १९.से किं तं पत्थगदिट्टतेणं? पत्थगदिढ़तेणं से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहत्तो गच्छेज्जा। तं च केइ पासित्ता वएज्जा-कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति-पत्थगस्स गच्छामि। प्रस्थक दृष्टांत क्या है? । प्रस्थक दृष्टांत-जैसे कोई पुरुष कुल्हाड़ा लेकर अटवी की ओर जाता है, उसे देखकर कोई कहता है-आप कहां जाते हैं? अविशुद्ध नैगम नय कहता है-प्रस्थक के लिए जाता तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा-किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति-पत्थगं छिंदामि। तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा-किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति-पत्थगं तच्छेमि। तं च केइ लिहमाणं पासित्ता वएज्जा-किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति-पत्थगं उक्किरामि। तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा-किं भवं लिहसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति-पत्थगं लिहामि। उसे वृक्ष को काटते हुए देखकर कोई कहता है-आप क्या काटते हैं? विशुद्ध नैगम नय कहता है-प्रस्थक काटता हूं। उसे छीलते हुए देख कर कोई कहता है-आप क्या छीलते हैं? विशुद्धतर नैगम नय कहता है-प्रस्थक छीलता हूं। उसे उकेरते हुए देखकर कोई कहता है-आप क्या उकेरते हैं? विशुद्धतर नैगम नय कहता है-प्रस्थक उकेरता हूं। उसे लेखनी से अंकित करते हुए देखकर कोई कहता है-आप क्या अंकित कर रहे हैं? विशुद्धतर नैगम नय कहता है-प्रस्थक अंकित कर रहा हूं। इसी तरह विशुद्धतर नैगम नय नामांकित होने पर उसे प्रस्थक मानता है। इसी प्रकार व्यवहार नय भी पूर्वोक्त.सभी अवस्थाओं को प्रस्थक मानता है। एवं विसुद्धतरागस्स नेगमस्स नामाउडिओ पत्थओ। एवमेव ववहारस्स वि। १. धान्यमाप का पात्र, पायली।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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