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________________ प्रायोगिक दर्शन ६२९ अ.१४: नयवाद १२.पच्चुप्पण्णग्गाही उज्जुसुओ नयविही मुणेयव्वो। इच्छइ विसेसियतरं पच्चुप्पण्णं नओ सहो॥ ऋजुसूत्र नय प्रत्युत्पन्न का ग्रहण करता है-कालकृत भेद के आधार पर वस्तु का विभाग करता है। शब्द नय काल, लिंग आदि के भेद से वर्तमान का भेद करता है। १३.वत्थूओ संकमणं होइ अवत्थू नए समभिरूढे। वंजण-अत्थ-तदुभयं वस्तु का दूसरे अर्थ में संक्रमण होने पर वह अवस्तु बन जाती है, इसलिए समभिरूढ़ प्रतिपाद्य अर्थ के अनुरूप शब्द का ग्रहण करता है। एवंभत नय शब्द और अर्थ दोनों को विशेषित कर देता है। वह वर्तमान क्रिया में परिणत अर्थ को ही उसके वाचक शब्द का वाच्य मानता एवंभूओ विसेसेइ॥ द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय १४.दव्वठियवत्तव्वं द्रव्यार्थिक नय का वक्तव्य पर्यायार्थिक की दृष्टि में . अवत्थु णियमेण पज्जवणयस्स। नियमतः अवस्तु है। इसी तरह पर्यायार्थिक का वक्तव्य तह पज्जववत्थु - द्रव्यार्थिक की दृष्टि में अवस्तु है। अवत्थुमेव दव्वट्ठियनयस्स॥ १५.दव्वं पज्जवविउयं दव्वविउत्ता य पज्जवा णत्थि। उप्पाय-दिठइ-भंगा हंदि दवियलक्खणं एयं॥ द्रव्य उत्पाद और व्यय रूप पर्याय से रहित नहीं होता। इसी प्रकर पर्याय द्रव्य (ध्रुवांश) से रहित नहीं होता। उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य-तीनों मिलकर द्रव्य का लक्षण बनते हैं। जीव : शाश्वत-अशाश्वत १६.जीवाणं भंते! किं सासया? असासया? भंते! जीव शाश्वत हैं या आशाश्वत? ... गोयमा! जीवा सिय सासया, सिय असासया। गौतम! जीव कथंचित् शाश्वत हैं कथंचित् अशाश्वत हैं। ' से केणठेणं भंते! एवं वुच्चइ-जीवा सिय भंते! यह कथन किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-जीव सासया? सिय असासया? कथंचित् शाश्वत हैं, कथंचित् अशाश्वत हैं? गोयमा! दव्वट्ठयाए सासया, भावट्ठयाए गौतम! द्रव्य की अपेक्षा जीव शाश्वत हैं और भाव असासया। से तेणठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-जीवा (पर्याय) की अपेक्षा जीव अशाश्वत हैं। इस अपेक्षा से यह सिय सासया। सिय असासया। कहा जा रहा है-जीव कथंचित शाश्वत हैं, कथंचित् अशाश्वत हैं। परमाणु : शाश्वत-अशाश्वत १७.परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सासए? असासए? गोयमा! सिय सासए, सिय असासए। भंते! परमाणु पुद्गल शाश्वत है या अशाश्वत ? गौतम! कथंचित् शाश्वत है और कथंचित् अशाश्वत है।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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