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________________ आत्मा का दर्शन ६२० य पंथकोट्टेह विहम्मेमाणे- विहम्मेमाणे तालेमाणे तालेमाणे निद्धणे भेज्जेहि य कुंतेहि य लंछपोसेहि य आलीवणेहि य ओवीलेमाणे- ओवीलेमाणे तज्जेमाणे तज्जेमाणे करेमाणे - करेमाणे विहरs | · तणं से एक्काई रट्ठकूडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स बहूणं राईसर-तलवर - माडंबिय - कोडुंबिय - इब्भ-सेट्ठि- सेणावइ- सत्थवाहाणं अण्णेसिं च बहूणं गामेल्लग - पुरिसाणं बहुसु कज्जेसु य कारणेसु य मंतेसु य गुज्झएसु य निच्छएसु य ववहारेसु य सुणमाणे भणइ न सुणेमि, असुणमाणे भणइ सुणेमि । पस्समाणे भणइ न पासेमि, अपस्समाणे भणइ पासेमि । भासमाणे भणइ न भासेमि, अभासमाणे भणइ भासेमि । गिण्हमाणे भणइ न गिण्हेमि, अगिण्हमाणे भणइ गिण्हेमि । जाणमाणे भणइ न जाणेमि, अजाणमाणे भणइ जाणेमि । तए णं एक्काइ रट्ठकूडे एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावं कम्मं कलिकलुसं समज्जिणमाणे विहरइ । तए णं तस्स एक्काइस्स रट्ठकूडस्स अण्णया काइ सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउब्भूया, तं जहा सासे कासे जरे दाहे, कुच्छिसूले भगंदले, अरिसा अजीरए दिट्ठी - मुद्रसूले अकारए । अच्छिवेयणा कण्णवेयणा कंडू उदरे कोढे ।। तणं से एक्काई रट्ठकूडे सोलसहिं रोगायंकेहिं अभिभू समाणे कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी गच्छहणं तुब्भे देवाणुप्पिया ! विजयवद्धमाणे खेडे सिंघाडग-तिग- चउक्क चच्चर चउम्मुह - महापहपहेसु महया - महया सद्देणं उग्घोसेमाणाउग्घोसेमाणा एवं वयह- इहं खलु देवाणुप्पिया ! एक्काइस्स रट्ठकूडस्स सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउब्भूया | खण्ड - ४ अपमानित करता। आरोप लगाकर दंडित करता। परिवारों में फूट डाल देता । अत्यधिक जुर्माना लगाकर गांवों को हड़पता। चोरों का पोषण करता। लोगों को उत्पीड़ित करने के लिए गांवों में आग लगा देता, राहगिरों को मारपीट कर लूट लेता। ऐसे आचरणों से गांवों को पीडित करता, हत-प्रहत करता, तर्जना देता, ताड़ना देता और उन्हें निर्धन बना देता । एक्काई राठौड़ विजयवर्धमान खेड़ा के राजा, ईश्वर (सामंत) आदि के कार्यों में, कारणों में, गुप्त-मंत्रणाओं में, नैश्चयिक और व्यावहारिक प्रसंगों में सुनता हुआ कहता, मैं नहीं सुन रहा हूं। नहीं सुनता हुआ कहता, मैं सुन रहा हूं। देखता हुआ कहता, मैं नहीं देख रहा हूं। नहीं देखता हुआ कहता, मैं देख रहा हूं। बात कहता हुआ कहता, मैं नहीं कह रहा हूं। बात नहीं कहता हुआ कहता, मैं कह रहा हूं। लेता हुआ कहता, मैं नहीं ले रहा हूं। नहीं लेता हुआ कहता मैं ले रहा हूं। जानता हुआ कहता, मैं नहीं जान रहा हूं। नहीं जाता हुआ कहता, मैं जान रहा हूं। एक्काई राठौड़ ने ऐसा कर्म और आचरण कर बहुत से पापकर्मों से अपने आपको मलिन बना लिया। किसी समय एक्काई राठौड़ के शरीर में एक साथ सोलह रोग और आतंक पैदा हो गए। जैसे श्वास, खांसी, ज्वर, दाह, कुक्षिशूल, भगंदर, बवासीर, अजीर्ण, दृष्टिशूल, मस्तकशूल, भोजन के प्रति अरुचि, अक्षिवेदना, कर्णवेदना, खुजली, जलोदर और कुष्ठ । एक्काई राठौड़ ने इन सोलह रोगों व आतंक से अभिभूत हो कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा देवानुप्रियो ! तुम विजयवर्धमान खेड़ा में जाओ। उसके दुराहों, तिराहों और चौराहों पर जाकर उच्च स्वर से उद्घोषणा करो - देवानुप्रियो ! एक्काई राठोड़ के शरीर में सोलह रोग और आतंक उत्पन्न हुए हैं।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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