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प्रायोगिक दर्शन
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अ. १३ : कर्मवाद
पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा। पच्चक्खं खलु मैंने नरक और नारकीय जीवों को नहीं देखा है। पर यह अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेदिति त्ति पुरुष प्रत्यक्ष रूप से नरक सदृश वेदना भोग रहा है, ऐसा कटु मियं देविं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता मियाए दे- सोच मृगादेवी को पूछ वहां से चले। वीए गिहाओ पडिनिक्खमइ।..... जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, भगवान महावीर के पास आए। तीन बार प्रदक्षिणा की। उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदन-नमस्कार किया और बोलेआयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीसे णं भंते! पुरिसे पुव्वभवे के आसि? किं नामए भंते! वह पुरुष पूर्व जन्म में कौन था? उसका नाम, वा किंगोत्ते वा? कयरंसि गामंसि वा नयरंसि वा? गोत्र क्या था? किस ग्राम, नगर का निवासी था? उसने किं वा दच्चा किं वा भोच्चा किं वा समायरित्ता, क्या दिया, क्या भोगा और क्या आचरण किया ? वह किन केसिं वा पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं पूर्वकृत दुश्चीर्ण, दुष्प्रतिकांत, अशुभ, पापकारी कर्मों का असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्ति- पापफल भोग रहा है? विसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ?
मृगापुत्र का पूर्वभव एक्काई राठौड़ ४९.गोयमाइ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं श्रमण भगवान महावीर ने गौतम को संबोधित कर - वयासी-एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं कहा-गौतम ! उस काल और उस समय में जंबूद्वीप द्वीप के
समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सयदुवारे - भरतक्षेत्र में शतद्वार नाम का नगर था। नामं नयरे होत्था। तत्थ णं सयदुवारे नयरे धणवई नाम राया होत्था। शतद्वार नगर में धनपति नाम का राजा था। तस्स णं सयदुवारस्स नयरस्स अदूरसामंते शतद्वार नगर के परिपार्श्व में दक्षिण-पूर्व दिशा में दाहिण-पुरत्थिमे दिसीभाए विजयवद्धमाणे नामं विजयवर्धमान नाम का खेड़ा था। खेडे होत्था। तस्स णं विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच विजयवर्धमान खेड़ा के अधिकार में ५०० ग्राम थे। गामसयाई आभोए यावि होत्था। तत्थ णं विजयवद्धमाणे खेडे एक्काई नाम विजयवर्धमान खेड़ा में एक्काई नाम का राठौड़ था। वह रट्ठकूडे होत्था-अहम्मिए.....दुस्सीले दुव्वए अधार्मिक, दःशील. दाव्रती और दुष्कत में आनन्द दुप्पडियाणंदे।
मनानेवाला था। से णं एक्काई रट्ठकूडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स एक्काई राठौड़ विजयवर्धमान खेड़ा के ५०० ग्रामों का पंचण्हं गामसयाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं..... करेमाणे आधिपत्य कर रहा था। पालेमाणे विहरइ। तए णं से एक्काई रट्ठकूडे विजयवद्धमाणस्स एक्काई राठौड़ विजयवर्धमान खेड़ा के ५०० ग्रमों पर खेडस्स पंच गामसयाई बहूहिं करेहि य भरेहि य बहुत अधिक कर लगाता। दिया हुआ अन्न दुगुना वसूल विल्द्धीहि य उक्कोडाहि य पराभवेहि य देज्जेहि य करता। ब्याज कड़ा लेता। रिश्वत लेता। लोगों को