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________________ आत्मा का दर्शन ६१८ खण्ड-४ एयमढं संलवइ, तावं च णं मियापुत्तस्स दारगस्स कर रही थी, तभी बालक मृगापुत्र के भोजन का समय हो भत्तवेला जाया यावि होत्था। गया। तए णं सा मियादेवी भगवं गोयम एवं वयासी- मृगादेवी ने भगवान गौतम से कहा-भंते! आप यहीं तुब्भे णं भंते! इहं चेव चिट्ठह जा णं अहं तुब्भं ठहरें। मैं आपको बालक मृगापुत्र दिखलाती हूं, ऐसा कह वह मियापुत्तं दारगं उवदंसेमि त्ति कटु जेणेव भत्तघरए भोजनशाला में गई। वस्त्र परिवर्तित किए। काठ की गाड़ी. तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, वत्थपरियट्टयं ली। उसमें विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य भरा। काठ करेइ। कट्ठसगडियं गिण्हइ। विउलस्स असण- की गाड़ी को खींचती हुई भगवान गौतम के पास आई। पाण-खाइम साइमस्स भरेइ। तं कट्ठसगडियं अणुकड्ढमाणी-अणुकड्ढमाणी जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ। भगवं गोयम एवं वयासी-एह णं भंते! तुब्भे मए भगवान गौतम से बोली-भन्ते! आप मेरे पीछे-पीछे सद्धिं अणुगच्छह जा णं अहं तुब्भं मियापुत्तं दारगं आएं। मैं आपको मृगापुत्र बालक दिखलाती हूं। ' उवदंसेमि। तए णं से भगवं गोयमे मियं देविं पिट्ठओ भगवान गौतम मृगादेवी के पीछे-पीछे चले। समणुगच्छइ। तए णं सा मियादेवी तं कट्ठसगडियं मृगादेवी उस काठ की गाड़ी को खींचती हुई भूमिगृह के अणुकड्ढमाणी-अणुकड्ढमाणी जेणेव भूमिघरए । पास आई। चार तहवाले वस्त्र से मुंह बांधती हुई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चउप्पुडेणं वत्थेणं बोली-भंते! आप भी मुखवस्त्रिका से मुख बांध लें। मुहं बंधमाणी भगवं गोयम एवं वयासी-तुब्भे विणं भंते ! मुहपोत्तियाए मुहं बंधह। तए णं से भगवं गोयमे मियादेवीए एवं वुत्ते समाणे भगवान गौतम ने मृगादेवी के ऐसा कहने पर । मुहपोत्तियाए मुहं बंधे। मुखवस्त्रिका से मुख बांध लिया। तए णं सा मियादेवी परंमुही भूमिघरस्स दुवारं मृगादेवी ने मुंह फेर भूमिगृह का द्वार खोला। दुर्गंध आने विहाडेइ। तए णं गंधे निग्गच्छइ, से जहानामए- लगी जैसे कोई मृत कलेवर पड़ा हो। अहिमडे इ वा......। तए णं से मियापुत्ते दारए तस्स विउलस्स असण- मृगापुत्र बालक विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य पाण-खाइम-साइमस्स गंधेणं अभिभूए समाणे की गंध से अभिभूत हो उस खाद्य सामग्री में मूर्छित हो मुंह तंसि विउलंसि असण-पाण-खाइम-साइमंसि में खाने लगा। खाया हुआ भोजन तत्काल विध्वस्त हो मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे तं विउलं गया। पीव ओर रुधिर रूप में परिणत हो गया। उस पीव व असण-पाण-खाइम-साइमं आसएणं आहारेइ, रुधिर को वह पुनः खाने लगा। आहारेत्ता खिप्पामेव विद्धंसेइ, विद्धंसेत्ता तओ पच्छा पूयत्ताए य सोणियत्ताए य पारिणामेइ, तं पि य णं पूयं च सोणियं च आहारेइ। तए णं भगवओ गोयमस्स तं मियापुत्तं दारगं बालक मृगापुत्र को देखकर भगवान गौतम के मन पासित्ता अयमेयारूवे.....संकप्पे समुप्पज्जित्था- में संकल्प उत्पन्न हुआ-अहो! यह बालक पूर्वकृत अहो णं इमे दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं । दुश्चीर्ण, दृष्प्रतिक्रांत, अशुभ, पापकारी कर्मों का दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पापफल भोग रहा है।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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