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प्रायोगिक दर्शन
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अहासु देवाणुप्पिया!
तणं से भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अम्भणुण्णा, समाणे हट्ठतुट्ठे..... अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे- सोहेमाणे जेणेव मियग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मियग्गामं नयरं मज्झं मज्झेणं जेणेव मियादेवीए गिहे तेणेव उवागच्छइ ।
तए णं सा मियादेवी भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ.......आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता सत्तट्ठपयाइं अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, वंदs नमसs, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीसंदिसंतु णं देवाणुप्पिया! किमागमणप्पओयणं ? तए णं से भगवं गोयमे मियं देविं एवं वयासी- अहं णं देवाप्पिए! तव पुत्तं पासिउं हव्वमागए । तए णं सा मियादेवी मियापुंत्तस्स दारगस्स अणुमग्गजायए चत्तारि पुत्ते सव्वालंकारविभूसिए करेह, करेत्ता भगवओ गोयमस्स पाएस पाडेइ, पाडेत्ता एवं वयासी- एए णं भंते! मम पुत्ते पासह । तए णं से भगवं गोयमे मियं देविं एवं वयासी-नो खलु देवाणुप्पिए! अहं एए तव पुत्ते पासिउं हव्वमागए। तत्थ णं जे से तव जेट्ठे पुत्ते मियापुत्ते दारए जाइअंधे जायअंधारूवे, जं णं तुमं रहस्सियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी- पडिजागरमाणी विहरसि, तं णं अहं पासिउं हव्वमागए ।
तणं सा मियादेवी भगवं गोयमं एवं वयासी-से के णं गोयमा ! से तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा, जेणं एसमट्ठे मम ताव रहस्सीकए तुब्भं हव्वमक्खाए, जओ णं तुब्भे जाणह ?
तणं भगवं गोयमे मियं देविं एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिए! मम धम्मायरिए समणे भगवं महाबीरे तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा, जेणं . एसमट्ठे तव ताव रहस्सीकए मम हव्वमक्खाते, जओ णं अहं जाणामि ।
जावं च णं मियादेवी भगवया गोयमेण सद्धिं
अ. १३ : कर्मवाद
देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो ।
भगवान गौतम श्रमण भगवान महावीर की अनुमति प्राप्त कर प्रसन्न और तुष्ट हुए। वे मंद, अचपल और अनुद्विग्न गति से युगमात्र ( शरीर प्रमाण) भूमि को देखते हुए, ईर्या का शोधन करते हुए मृगाग्राम नगर में आए। मृगाग्राम नगर के मध्य से होते हुए मृगादेवी के घर पहुंचे।
मृगादेवी भगवान गौतम को आते देख प्रसन्न और तुष्ट हुई। आसन से उठी । सात-आठ कदम सामने गई। तीन बार प्रदक्षिणा की। वंदन - नमस्कार किया और बोली- देवानुप्रिय ! आपके आगमन का प्रयोजन क्या है, बतलाएं ?
भगवान गौतम ने मृगादेवी से कहा- मैं तुम्हारे पुत्र को देखने आया हूं।
मृगादेवी ने मृगापुत्र बालक के बाद में जनमे हुए चारों पुत्रों को सर्वालंकार से विभूषित किया। भगवान गौतम के चरणों में लाई और बोली- भंते! देखें, ये मेरे पुत्र हैं।
भगवान गौतम ने मृगादेवी से कहा- देवानुप्रिये ! मैं तुम्हारे इन पुत्रों को देखने नहीं आया हूं। तुम्हारा ज्येष्ठपुत्र, बालक मृगापुत्र है, जो जन्म से अंधा और अंधरूप है और जिसका तुम प्रच्छन्न भूमिगृह में प्रच्छन्न रूप से भोजन, पानी आदि के द्वारा पोषण करती हो, मैं उसे देखने आया हूं।
मृगादेवी ने भगवान गौतम से कहा- गौतम ! ऐसा कौन ज्ञानी और तपस्वी है, जिसने मेरे इस रहस्य को आपके सामने प्रकट किया है और जिससे आपने यह सब ज्ञात किया है ?
भगवान गौतम ने मृगादेवी से कहा- देवानुप्रिये ! मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान महावीर ऐसे ज्ञानी और तपस्वी हैं, जिन्होंने तुम्हारा यह रहस्य बतलाया है। उसीसे मैंने यह जाना है।
मृगादेवी भगवान गौतम के साथ इस विषय में बात