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________________ ४७ उद्भव और विकास अ.१: महावीर और उनका परिवार भगवं अट्ठावीसतिवरिसो जातो, एत्थंतरे भगवान महावीर अट्ठाईस वर्ष के हुए तब उनके अम्मापियरा कालगता। माता-पिता कालधर्म को प्राप्त हो गए। वैराग्य और प्रव्रज्या २५.पच्छा सामी णदिवद्धणसुपासपमुहं सयणं भगवान महावीर ने गर्भावस्था में प्रतिज्ञा की थी आपुच्छति, समत्ता पतिन्नत्ति। ताहे ताणि 'माता-पिता के जीवनकाल में दीक्षा नहीं लूंगा।' माताविगुणसोगाणि भणंति-मा भट्टारगा! सव्वजगद- पिता के स्वर्गवास होने पर प्रतिज्ञा पूर्ण हो गई। महावीर ने पिता परमबंधू एक्कसराए चेव अणाहाणि होमुत्ति, नंदिवर्धन, सुपार्श्व आदि स्वजन वर्ग से कहा-मैं अब इमेहिं कालगतेहिं तुम्भेहिं विणिक्खमवन्ति खते दीक्षा लेना चाहता हूं। दीक्षा की बात सुनकर उनका शोक खारं पक्खेव। ता अच्छह कंचि कालं जाव अम्हे द्विगुणित हो गया। उन्होंने कहा-हे स्वामिन् ! हे परमेश्वर! विसोगाणि जाताणि। हे परमबन्धु ! क्या हम एक साथ ही अनाथ हो जाएंगे? इधर माता-पिता के दिवंगत होने का शोक और उधर तुम्हारी दीक्षा की बात। यह घाव पर नमक छिड़कने जैसा है। तुम तब तक हमारे साथ रहो, जब तक हम शोक मुक्त न हो जाएं। अपरं विहिं संवच्छरेहिं रायदेविसोगोणस्सेज्जति। हमारा राजकीय शोक दो वर्ष के बाद समाप्त होगा। ताहे पडिस्सुतं तो गवरं अच्छामि जति महावीर ने स्वीकार किया-मैं घर में रह सकता है, पर अप्पच्छदेण भोवणादि किरियं करेमि। ताहे इस शर्त के साथ मैं भोजन आदि समस्त क्रियाएं अपनी सममिती असिसयल्यपि ताव से कंचि कालं इच्छानुसार करूंगा। उन्होंने महावीर की बात का समर्थन पासामो। किया। उन्होंने सोचा-महावीर के विशिष्ट साधना रूप को भी हम कुछ समय तक देख लें। , २६.एवं सयं निक्खमणकालं गच्चा अवि साहिए दुवे महावीर ने स्वयं अपने अभिनिष्क्रमण काल के बारे में वासे सीतोदगमभोच्या णिक्खते। अप्फासुगं निर्णय किया और दो वर्ष से अधिक समय तक गृहस्थ आहारं राहभत्तं च अणाहारेंतो बंभयारी । जीवन में रहे। इस अवधि में उन्होंने सचित्त जल का असंजमवावाररहितो ठिओ। ण य फासुगेण वि सेवन नहीं किया। अप्रासुक भोजन का वर्जन किया। रात्रि पहातो, हत्यपादसोयणं तु फासुगेणं आयमणं च। भोजन नहीं किया। ब्रह्मचर्य की साधना की। असंयमपूर्ण परं णिक्खमणमहाभिसेगे अप्फासुगेणं ण्हाणितो, प्रवृत्ति का वर्जन किया। अचित्त जल से भी स्नान नहीं ण य बंधवेहिवि अतिणेहं कतवं। किया। केवल हाथ-पैर की शुद्धि की और आचमन किया। निष्क्रमण-महाभिषेक के समय सचित्त जल से स्नान कराया गया। बन्धुजनों के साथ अतिस्नेह नहीं किया। २७.ताहे सेणियपज्जोयादयो कुमारा पडिगता, न एस चक्किति। - - - . . 'महावीर चक्रवर्ती होंगे'-ज्योतिर्विदों की इस भविष्यवाणी के आधार पर श्रेणिक, प्रद्योत आदि कुमार उनके पास रहते थे। मुनि बनने का निर्णय हुआ, तब वे अपने-अपने स्थान पर चले गए।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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