SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मा का दर्शन ४८ खण्ड-२ २८.एत्थंतरे भगवं संवच्छरावसाणे णिक्खमिस्सामिति मणं पधारेति। भगवान ने 'एक वर्ष के बाद अभिनिष्क्रमण करूंगा' यह मानसिक धारणा कर ली। २९.तओ णं समणे भगवं महावीरे दाहिणेणं दाहिणं वामेणं वामं पंचमुठ्ठियं लोयं करेत्ता सिद्धाणं णमोक्कारं करेइ, करेत्ता-सव्वं मे अकरणिज्जं पावकम्मं ति कटु सामाइयं चरित्तं पडिवज्जइ। भगवान महावीर ने दीक्षा से पूर्व दायें हाथ से दायीं ओर का तथा बाएं हाथ से बायीं ओर का लोच (केशों का अपनयन) किया। सिद्धों को नमस्कार किया। उसके पश्चात् 'मेरे लिए सब पाप कर्म अकरणीय हैं'-इस संकल्प के साथ सामायिक चारित्र स्वीकार किया। ३०.तओ णं समणे भगवं महावीरे....., एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-'बारसवासाइं वोसट्ठकाए चत्तदेहे। जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा-दिव्वा वा, माणुसा वा, तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसम्गे समुप्पण्णे समाणे अणाइले अव्वहिते अहीणमाणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते सम्मं सहिस्सामि खमिस्सामि अहियासइस्सामि।' श्रमण महावीर ने इस प्रकार अभिग्रह ग्रहण किया-मैं बारह वर्ष पर्यंत शरीर का व्युत्सर्ग और देह का त्याग करूंगा-शरीर की सार-संभाल नहीं करूंगा। इस अवधि में देव, मनुष्य और तिर्यंच संबंधी जो भी उपसर्ग उत्पन्न होंगे, उन्हें मैं अनाकुल, अव्यथित्त और अदीनभाव से मन, वचन और काया-इन तीनों से गुप्त रहकर सम्यक् प्रकार से सहन करूंगा। अचेलकत्व ३१.णो चेविमेण वत्थेण पिहिस्सामि तंसि हेमंते। से पारए आवकहाए दीक्षा के समय भगवान महावीर एक शाटक थे। कंधे पर एक वस्त्र धारण किए हुए थे। भगवान ने संकल्प किया-'मैं हेमन्त ऋतु में इस वस्त्र से शरीर को . आच्छादित नहीं करूंगा।' वे जीवनपर्यंत सर्दी के कष्ट को सहने का निश्चय कर चुके थे। यह उनकी अनुधर्मिता है-परंपरा का निर्वाह किया गया है।' एयं खु अणुधम्मियं तस्स॥ ३२.संवच्छरं साहियं मासं भगवान ने तेरह महीनों तक उस वस्त्र को नहीं छोड़ा जंण रिक्कासि वत्थगं भगवं। फिर अनगार और त्यागी महावीर उस वस्त्र को छोड़ अचेलए ततो चाई अचेलक हो गए। तं वोसज्ज वत्थमणगारे॥
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy