________________
प्रायोगिक दर्शन
भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदणं वेदेंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अणेवंभूयं वेदणं वेदेति ।
६१५
वेदना और निर्जरा
४१. से नूणं भंते! जा वेदणा सा निज्जरा ? जा निज्जरा सा वेदणा ?
गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे ।
से तेणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ-जा वेदणा न सा निज्जरा ? जा निज्जरा न सा वेदणा ?
गोयमा! कम्मं वेदणा, नोकम्मं निज्जरा ।
भंते! क्या जो वेदना है, वह निर्जरा है और जो निर्जरा है, वह वेदना है?
गौतम! ऐसा नहीं है।
भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - जो वेदना है, वह निर्जरा नहीं है और जो निर्जरा है, वह वेदना नहीं है ? गौतम! वेदना कर्म की होती है। निर्जरा नोकर्म (अकर्म) की होती है।
गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है- जो वेदना है, वह निर्जरा नहीं है। जो निर्जरा है वह वेदना नहीं है । दुःख का वेदन - अवेदन
से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-जा वेदणा न सा निज्जरा, जा निज्जरा न सा वेदणा ।
४२.जीवे णं भंते! सयंकडं दुक्खं वेदेइ ?
गोमा ! अत्थेगइयं वेदेइ, अत्थेगइयं नो वेदेइ ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ - अत्थेगइयं वेदेइ ? अत्थेगइयं नो वेदेइ ?
गोमा ! उदिण्णं वेदेइ, नो अणुदिण्णं वेदे ।
से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ - अत्थेगइयं वेदेइ, अत्थेगइयं नो वेदे ।
अ. १३ : कर्मवाद
भूत, जीव और सत्त्व एवंभूत वेदना का अनुभव करते हैं। कुछ प्राण, भूत, जीव और सत्त्व अनेवंभूत वेदना का अनुभव करते हैं।
४३. कम्मं चिणंति सवसा तस्सुदयम्मि उ परव्वसा होंति । रुक्खं दुरुह सवसो विगलइ स परव्वसो तत्तो ॥
४४. कम्मवसा खलु जीवा
जीववसाई कहिंचि कम्माई । कत्थइ धणिओ बलवं धारणिओ कत्थई बलवं ॥
भंते! क्या जीव स्वयंकृत दुःख का वेदन करता है ? गौतम ! किसी दुःख का वेदन करता है और किसी दुःख का वेदन नहीं करता |
भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-जीव किसी दुःख का वेदन करता है और किसी दुःख का वेदन नहीं करता ?
जीव की स्वतंत्रता और परतंत्रता
गौतम! वह उदीर्ण (उदय प्राप्त) दुःख का वेदन करता है और अनुदीर्ण (अनुदय प्राप्त) दुःख का वेदन नहीं करता ।
गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-जीव किसी दुःख का वेदन करता है और किसी दुःख का वेदन नहीं करता।
जीव कर्म करने के काल में स्वतंत्र है और उसके उदय काल में भोगने में परतंत्र है। जैसे कोई पुरुष वृक्ष पर चढ़ने में स्वतंत्र है, किन्तु प्रमाद-वश नीचे गिरते समय वह परतंत्र हो जाता है।
कहीं जीव कर्म के अधीन होते हैं तो कहीं कर्म जीव के अधीन होते हैं। ऋण देने में ऋणदाता और ऋण लौटाने में ऋण लेने वाला बलवान होता है।