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________________ ६०९ अ. १३ : कर्मवाद प्रायोगिक दर्शन पेसुन्ने, . परपरिवाए, अरतिरती, मायामोसे, मिच्छादसणसल्ले-एस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे पण्णत्ते? गोयमा! पंचवण्णे, दुगंधे, पंचरसे, चउफासे पण्णत्ते। परपरिवाद, अरति-रति, मायामृषा और मिथ्यादर्शन-शल्य में कितने वर्ण, गंध, रस और स्पर्श होते हैं? गौतम! पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और चार स्पर्श होते हैं। जीव और कर्म की अंतःक्रिया १३.जं जं समयं जीवो आविसइ जेण जेण भावेण। सो तंमि तंमि समए सुहासुहं बंधए कम्म॥ जिस-जिस समय में जीव जिस-जिस भाव में आविष्ट होता है, वह उस-उस समय में शुभ अथवा अशुभ कर्म का बंध करता है। १४.जम्हा कम्मस्स फलं विसयं ____ फासेहिं भुञ्जदे णियदं। जीवेण सुहं दुक्खं तम्हा कम्माणि मुत्ताणि॥ कर्म के फलभूत विषय इन्द्रियों के द्वारा भोगे जाते हैं, यह निश्चित है। सुख-दुःख का संवेदन भी इन्द्रियों द्वारा होता है। इन्द्रियां मूर्त हैं। इसलिए कर्म भी मूर्त हैं। १५.मुत्तो फासदि मुर्त मुत्तो.मुत्तेण बंधमणुहवदि। जीवो मुत्तिविरहिदो : गाहदि ते तेहिं उग्गहदि॥ मूर्त ही मूर्त का स्पर्श करता है और मूर्त ही मूर्त के द्वारा बंध का अनुभव करता है। जीव अमूर्त है फिर भी उसे मूर्त बनाने वाले राग आदि परिणामों के द्वारा वह मर्त कर्मों का अवगाहन करता है और वह उन कर्म पुद्गलों के द्वारा अवगाहित-बद्ध होता है। १६. कम्मगसरीरे चउफासे। कार्मणशरीर चतुःस्पर्शी-स्निग्ध-रूक्ष, शीत-उष्णस्पर्शवाला है। कर्म के प्रकार १७.चउव्विहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा कर्म के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं१. पगडीकम्मे १. प्रकृति कर्म-कर्म पुद्गलों का स्वभाव। २. ठितीकम्मे २. स्थिति कर्म-कर्म पुद्गलों की काल मर्यादा। ३. अणुभावकम्मे ३. अनुभाव कर्म-कर्म पुद्गलों के फल देने का सामर्थ्य। ४. पदेसकम्मे ४. प्रदेश कर्म-कर्म पुद्गल की द्रव्यराशि। कर्म का उपचय स्वाभाविक या प्रायोगिक? १८.वत्थस्स णं भते! पोग्गलोवचए किं पयोगसा? भंते! वस्त्र के पुद्गलों का उपचय प्रयोग से होता है वीससा? अथवा स्वभाव से? गोयमा! पयोगसा वि, वीससा वि। गौतम! वस्त्र के पुद्गलों का उपचय प्रयोग से भी होता है और स्वभाव से भी।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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