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आत्मा का दर्शन
तणं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी - सहालपुत्ता ! जइ णं तुब्भं hs पुरिसे वाताहतं वा पक्केल्लयं वा कोलालभंड अवहरेज्ज वा विक्खिरेज्ज वा भिंदेज्ज वा अच्छिदेज्ज वा परिट्ठवेज्ज वा, अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धिं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरेज्जा, तस्स णं तुमं पुरिसस्स कं दंड वत्तेज्जासि ?
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भंते! अहं णं तं पुरिसं आओसेज्ज वा हणेज्ज वा बंधेज्ज वा महेज्ज वा तज्जेज्ज वा तालेज्ज वा निच्छोडेज्ज वा निब्भच्छेज्ज वा, अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेज्जा ।
सद्दालपुत्ता! नो खलु तुब्भं केइ पुरिसे वाताहतं वा पक्केल्लयं वा कोलालभंडं अवहरइ वा विक्खिरइ वा भिंदइ वा अच्छिंदइ वा परिट्ठवेइ वा, अग्गमित्त भारियाए सद्धिं विउलाई भोगभोगाई भुंजमा विहर। नो वा तुमं तं पुरिसं आओसेसि वाहणेस वा बंधेसि वा महेसि वा तज्जेसि वा तालेसि वा निच्छोडेसि वा निब्भच्छेसि वा अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेसि, जइ नत्थि उट्ठाणे इ
कम्मे वाले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा । नियता सव्वभावा ।
अहणं तुब्भं केइ पुरिसे वाताहतं वा पक्केल्लयं वा कोलालभंड अवहरेइ वा विक्खिरेइ वा भिंदेइ वा अच्छिंदेइ वा परिट्ठवेइ वा, अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धिं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ । तुमं वा तं पुरिसं आओसेसि वा हणेसि वा बंधेसि वा महेसि वा तज्जेसि वा तालेसि वा निच्छोडेसि वा निब्भच्छेसि वा, अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेसि, तो जं वदसि नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा, नियता सव्वभावा, तं ते मिच्छा ।
एत्थं णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए संबुद्धे ।
खण्ड-४
श्रमण भगवान महावीर ने आजीवक मत के उपासक सद्दालपुत्र को संबोधित कर कहा - सद्दालपुत्र ! कोई पुरुष तुम्हारे हवा में सुखाए हुए और पकाए हुए मिट्टी के पात्रों का अपहरण करे, बिखेरे, भेदन करे, छेदन करे और परिष्ठापित करे अथवा तुम्हारी पत्नी अग्निमित्रा के साथ विपुल भोगों का भोग करे तो तुम उसे क्या दंड दोगे ?
भंते! मैं उस पुरुष पर आक्रोश करूंगा, उसे पीलूंगा, बांधूंगा, मधूंगा, तर्जना दूंगा, ताड़ना दूंगा, अपमानित करूंगा, भर्त्सना दूंगा और अकाल में ही उसे मार डालूंगा ।
सद्दालपुत्र! कोई पुरुष न तो तुम्हारे हवा में सुखाए हुए और पके हुए मिट्टी के पात्रों का अपहरण करने वाला हैं, न बिखरने वाला है, न भेदन करने वाला है, न छेदन करने वाला है, न परिष्ठापित करने वाला है अथवा न तुम्हारी अग्निमित्रा के साथ विपुल भोगों को भोगने वाला है और न ही तुम उस पुरुष पर आक्रोश करने वाले हो, न पीटने वाले हो, न बांधने वाले हो, न मथने वाले हो, न तर्जना देने वाले हो, न ताड़ना देने वाले हो, न अपमान करने वाले हो, न भर्त्सना करने वाले हो और न ही उसे अकाल में ही मारने वाले हो, यदि उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम कुछ नहीं है। सब भाव नियत हैं।
यदि कोई पुरुष हवा में सुखाए हुए और पके हुए तुम्हारे पात्रों का अपहरण करता है, बिखेरता है, भेदन करता है, छेदन करता है, परिष्ठापित करता है अथवा तुम्हारी अग्निमित्रा के साथ विपुल भोग भोगता है और बांधते तुम उस पुरुष पर आक्रोश करते हो, पीटते हो, मथते हो, तर्जना देते हो, ताड़ना देते हो, अपमानित करते हो, अकाल में ही उसे मार देते हो तो तुम जो कह रहे हो कि उत्थान कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम कुछ नहीं सब भाव नियत हैं, वह मिथ्या है।
भगवान महावीर का यह वचन सुनकर आजीवक मत का उपासक सद्दालपुत्र संबुद्ध हो गया ।