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आत्मा का दर्शन
खण्ड-४
देवाणुप्पिया! सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स मंखलिपुत्र गोशालक की नियतिवादी मान्यता सुन्दर है धम्मपण्णत्ती।.....मंगुली णं समणस्स भगवओ और श्रमण भगवान महावीर की मान्यता सुन्दर नहीं, तो महावीरस्स धम्मपण्णत्ती।.....तुमे णं देवाणुप्पिया! देवानप्रिय! तुम्हें यह दिव्य ऋद्धि, द्युति और प्रभाव कैसे इमा एयारूवा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे प्राप्त हुआ? देवाणुभावे किण्णा लद्धे?..... किं उट्ठाणेणं जाव पुरिसक्कार-परक्कमेणं? वह उत्थान यावत् पराक्रम से प्राप्त हुआ अथवा बिना उदाहु अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कार- उत्थान यावत् बिना पराक्रम के? परक्कमेणं? तए णं से देवे तुमं एवं वयासी-एवं खलु देव ने तुम्हें कहा-देवानुप्रिय! मैंने जो दिव्य ऋद्धि, देवाणुप्पिया! मए इमा एयारूवा दिव्या देविड्ढी द्युति और प्रभाव प्राप्त किया है, वह बिना ही उत्थानदिव्वा देवज्जई दिव्वे देवाणुभावे अणुट्ठाणेणं जाव यावत् पराक्रम से प्राप्त किया है। अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए। तए णं तुमं तं देवं एदं वयासी-जइ णं देवानुप्रिय! यदि तुमने दिव्य ऋद्धि, धुति और प्रभाव देवाणुप्पिया! तुमे इमा एयारुवा दिव्वा देविड्ढी बिना उत्थान यावत् बिना पराक्रम के प्राप्त किया है तो दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे अणुट्ठाणेणं जाव जिन जीवों के उत्थान यावत् पराक्रम नहीं हैं, वे देव क्यों अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसम नहीं हुए ? ण्णागए, जेसि णं जीवाणं नत्थि उट्ठाणे इ वा जाव परक्कमे इ वा, ते किं न देवा?
अह तुम्भे इमा एयारूवा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा तुम्हें यह दिव्य ऋद्धि, द्युति और प्रभाव उत्थान यावत् देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे उट्ठाणेणं जाव पराक्रम से प्राप्त हुआ है लो तुम जो गोशालक की परक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तो जं वदसि धर्मप्रज्ञप्ति को सुन्दर बताते हो और भगवान महावीर की सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्म- धर्मप्रज्ञप्ति को असुन्दर बताते हो, तुम्हारा कथन मिथ्या पण्णत्ती।..... मंगुली णं समणस्स भगवओ महा- हो जाएगा। वीरस्स धम्मपण्णत्ती।.... तं ते मिच्छा। तए णं से देवे तुम एवं वुत्ते समाणे संकिए....नो तुम्हारे ऐसा कहने पर वह देव संदिग्ध हो गया। वह संचाएइ तुब्भे किंचि पमोक्खमाइक्खित्तए, तुम्हारे प्रश्नों को उत्तरित नहीं कर सका। देव ने नामांकित नाममुद्दगं च उत्तरिज्जयं च पुढविसिलापट्टए मुद्रिका और उत्तरीय पृथ्वी शिलापट्ट पर रखा एवं जिस ठवेइ, ठवेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए, तामेव दिसं दिशा से आया था, उसी दिशा में चला गया। पडिगए। से नूणं कुंडकोलिया! अढे समठे ?
कुंडकौलिक! क्या यह सही है? हंता अत्थि।
हां, सही है। अज्जोति! समणे भगवं महावीरे समणा निग्गंथा श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण निग्रंथ एवं निग्रंथियों य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वयासी-जइ ताव को आमंत्रित कर कहा-आर्यो! गृहवास में रहते हुए अज्जो! गिहिणो गिहिमज्झावसंता अण्णउत्थिए गृहस्थी भी अन्यतीर्थिकों को अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण और अद्वेहि य हेऊहि य पसिणेहि य कारणेहि य व्याकरण से निरुत्तर कर सकते हैं। . वागरणेहि य निप्पट्ठपसिणवागरणे करेंति। सक्का पुणाई अज्जो! समणेहिं निग्गंथेहिं फिर श्रमणों का कहना ही क्या! आर्यो! द्वादशांग