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________________ उद्भव और विकास अ.१: महावीर और उनका परिवार ताहे भीते देवे चिंतेति-पत्थवि ण चलितो • छलेउंति। पच्छा सामिं वंदित्ता णट्ठो। देव ने भयभीत होकर सोचा-मैं इसे छलने में समर्थ नहीं है। वह महावीर को वंदन कर चला गया। विद्यार्थी जीवन १४.अन्नया अधितअट्ठवासजाते भगवं...... महावीर ने आठ वर्ष पूरे कर नौंवे वर्ष में प्रवेश किया। अम्मापिऊहिं लेहायरियस्स उवणीते। माता-पिता ने उन्हें लेखाचार्य (उपाध्याय) के पास भेजा। · इमस्स य लेहायरियस्स महतिमहालयं आसणं लेखाचार्य के लिए एक विशाल आसन का निर्माण रतियं। किया गया। सक्कस्स य आसणचलणं। सिग्घं आगमणं। ताहे इन्द्र का आसन चलित हुआ। वह शीघ्र वहां आया। सक्को तत्थ सामि निवेसति। इन्द्र ने लेखाचार्य के आसन पर महावीर को बिठाया। सोऽवि लेहायरियो तत्थेव अच्छति। ताहे सक्को लेखाचार्य भी वहीं बैठे थे। इन्द्र ने बद्धाञ्जलि हो करतलकतंजलिपुडो पुच्छति.......अकारादीण य । पूछा-अकार आदि अक्षरों के पर्याय कितने हैं? भंग पज्जाए भंगे गमे य पुच्छति। कितने हैं और गमा-सदृश पर्याय कितने हैं? ताहे सामी वागरेति अणेगप्पगारं। महावीर ने उनका अनेक प्रकार से व्याकरण किया। इमोडविं आयरियो सुणति। तस्स तत्थ केति लेखाचार्य ने इसे सुना। उन्हें अनेक नए पदों के पयत्या लग्गा। तप्पभितिं च णं ऐंद्रं व्याकरणं अर्थों का ज्ञान हुआ। उन प्रश्नों से ऐन्द्र नामक व्याकरण सवृत्तं। का निर्माण हुआ। ते य विम्हिता। लेखाचार्य आदि सभी आश्चर्यचकित हुए। सक्केण से सिलें-जहा भगवं सव्वं जाणति इन्द्र ने कहा-महावीर सब कुछ जानते हैं। इन्हें जातिसरो, तिणाणोवगतोत्ति। • जाति-स्मृति है। ये तीन ज्ञान से युक्त हैं। ताहे ताणि परितुट्ठाणि। इन्द्र द्वारा यह सुन सब संतुष्ट हुए। महावीर का अध्ययनकाल सम्पन्न हो गया। महावीर के तीन नाम . १५.समंणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते। तस्स णं इमे श्रमण भगवान महावीर का गोत्र काश्यप था। वे तीन तिण्णि णामधेज्जा एवमाहिज्जति, तं जहा- नामों से संबोधित किए जाते थे१. अम्मापिउसंतिए वद्धमाणे। ..१. उनका माता-पिता के द्वारा प्रदत्त नाम था वर्द्धमान। २. सहसम्मुइए समणे। २. उन्हें सहज ज्ञान प्राप्त था, इसलिए वे समण कहलाए। ३. भीमं भयभेरवं उरालं अचेलयं परिसहं सहइ ३. भीम, अतिभयंकर और मुख्य अचेल परीषह को त्ति कटु देवेंहिं से णामं कयं समणे भगवं सहने के कारण देवों ने उनका नाम श्रमण भगवान महावीरे। महावीर रखा। महावीर का परिवार । १६.समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पिआ कासव- श्रमण भगवान महावीर के पिता काश्यपगोत्रीय थे। वे गोत्तेणं। तस्स णं तिण्णि णामधेज्जा तीन नामों से संबोधित किए जाते थेएवमाहिज्जंति, तं जहा
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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