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________________ आत्मा का दर्शन ४४ खण्ड-२ १२.जण्णं रयणिं तिसला खत्तियाणी समणं भगवं जिस रात्रि में त्रिशला क्षत्रियाणी ने श्रमण भगवान महावीरं अरोया अरोयं पसूया, तण्णं रयणिं महावीर को जन्म दिया, उस रात्रि में भवनवासी, भवणवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिणो देवा वाणमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव-देवियों ने कौतुक, य देवीओ य समणस्स महावीरस्स भूतिकर्म तथा तीर्थंकराभिषेक किया। कोउगभूयकम्माइं तित्थयराभिसेयं च करिसु। आमलकी क्रीड़ा १३.तए णं एवं वड्ढमाणे भगवं ऊणअट्ठवासे जाते। महावीर आठ वर्ष के हो रहे थे। उस समय में भी वे से य अल्लीणे भइए विणीए सूरे वीरे विक्कते। स्थिर, भद्र, विनम्र और पराक्रमी थे। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविदे....... एक बार देवसभा के मध्य स्थित देवराज इन्द्र ने भगवतो संतगुणकित्तणयं करेति-अहो भगवं! बाले भगवान महावीर का गुणोत्कीर्तन करते हुए कहा-महावीर अबालभावे बाले अबालपरक्कमे अवुड्ढे बालक हैं फिर भी उनमें बचपन का भाव नहीं है। बालक वुड्ढसीले। महावीरे ण सक्का देवेण वा दाणवेण हैं फिर भी उनका पराक्रम प्रौढ़ है। वे वृद्ध नहीं हैं फिर भी वा जाव इंदेहिं वा भेसेउं परक्कमेण वा पराजिणितं । वृद्ध जैसे शीलवाले हैं। कोई भी देव, दानव, इन्द्र उन्हें छलेउं वा। भयभीत नहीं कर सकता। अपनी शक्ति से उन्हें परास्त नहीं कर सकता। छल नहीं सकता। तत्थ एगे देवे सक्कस्स एयमठं असहहते जेणेव एक देव ने इन्द्र के इस कथन पर श्रद्धा नहीं की। वह भगवं तेणेव उवागते। भगवं च पमदवणे चेडरूवेहिं महावीर के पास आया। महावीर उस समय प्रमदवन में समं सुंकलिकडएण अभिरमति। तस्स तेसु बच्चों के साथ आमलकी क्रीड़ा कर रहे थे। इस क्रीड़ा में रुक्खेसु जो पढमं विलग्गति जो पढमं ओलुभति जो वृक्ष पर सर्वप्रथम चढ़कर उतर जाता, वह विजयी सो चेडरूवाणि वाहेति। होता और पराजित बच्चों के कंधों पर चढ़कर आता। सो य देवो आगंतूण हेट्ठतो रुक्खस्स। देव वृक्ष के नीचे आया। महावीर को भयभीत करने के सामिभेसणढं एगं महं उम्गविसं चंडविसं घोरविसं लिए एक भयंकर, उग्रविष, घोरविष और चंडविष वाले महाविसं.....दिव्वं दिट्ठीविससप्परूवं विउव्वित्ता सर्प का निर्माण किया। सर्प वृक्ष पर चढ़ा। उप्पराहुत्तो अच्छति। ताहे सामिणा अमूढेणं वामहत्थेणं सत्ततले ___महावीर ने उसे देखा और जागरूकतापूर्वक अपने उच्छूढी। बाएं हाथ से सात तल तक फेंक दिया। ताहे देवो चिंतेति-एत्थ ताव ण छलिओ। देव ने सोचा-मैं इसे छल नहीं सका हूं। अह पुणरवि सामी तंदूसएणं अभिरमति। सो य महावीर गेंद से खेल रहे थे। देव ने बच्चे का रूप देवो चेडरूवं विउविऊणं सामिणा समं बनाया और महावीर के साथ खेलने लगा। अभिरमति। तत्थ सामिणा सो जितो। तस्स य उवरिं विलग्गो महावीर ने उसे पराजित कर दिया और उसके कंधों सामी। ...... पर चढ़ गए। तए णं से देवे सामि-भेसणठें एगं महं देव ने महावीर को भयभीत करने के लिए एक भयंकर तालपिसायरूवं विउव्वित्ता पव्वडिढउं पवत्तो....एवं ताड़ पिशाच का रूप बनाया और बढ़ता ही चला गया। सामिणा दठूण अभीतेणं तलप्पहारेणं आहत जहा महावीर ने उसे देखा और बिना डरे एडी से प्रहार किया। तत्थेव णिवुड्डे। वह वहीं भूमि में धंस गया।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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