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उद्भव और विकास
तंपि य सिद्धत्थरायवरभवणं उवरयमुइंगतंती तलतालनाडइज्जं दीणविमणदुम्मणं चावि विहरइ |
६. तए णं भगवं एतं वियाणित्ता एगदेसेणं एजति ।
७. तए णं सा हट्ठतुट्ठा जाव रोमकूवा एवं वयासीखलु मे ह ग जाव णो गलिते ।...... तंपि य णं सिद्धत्थरायभवणं अणुवरयमुइंगतंतीतलतालणाडइज्ज-आइन्नजणमणुस्से सपमुइय
पकीलितं विहरति ।
तणं भगवं मातुपितु अणुकंपणट्ठाए गब्भत्थो अभिग गेहति - णाहं समणे होक्खामि जाव एतानि एत्थ जीवंतित्ति ।
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तेन कालेनं तेणं समएणं तिसला खत्तियाणी अह अष्णया कयाइ नवहं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं, अट्टमाणं राइंदियाणं वीतिक्कंताणं, जे से गिम्हाणं पढमे मासे, दोच्चे पक्खे-चेत्तसुळे, तस्स णं चेत्तसुखस्स तेरसीपक्खेणं, हत्थुत्तराइं नक्खत्तेणं जोगोवगएणं समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया ।
१०. जण्णं राई तिसला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया, तण्णं राहं भवणवइवाणमंतर - जोइसिय विमाणवासिदेवेहि य देवीहि य ओवयंतेहि य उप्पयंतेहि य एगे महं दिव्वे देवुज्जोए देवसण्णिवाते देवकहकहक्क हे उप्पिंजलभूए यावि होत्था।
जन्मोत्सव
११. जणं यणि तिला खत्तियाणी समणं भगवं महावीरं अरोया अरोयं पसूया, तण्णं रयणिं बहवे देवा य देवीओ य एगं महं अमयवासं च, गंधवासं च चुण्णवासं च, हिरण्णवासं च, रयणवासं च वासिंसु ।
अ. १ : महावीर और उनका परिवार
भूमि पर दृष्टि को गड़ा सोचने लगी । राजा सिद्धार्थ के भवन में वाद्य ध्वनि मंद हो गई।
महावीर ने अपने ज्ञान बल से यह स्थिति जानकर एक ओर से हलन चलन किया।
त्रिशला हृष्ट-तुष्ट हो गई और रोमांचित हो बोली- मेरा गर्भ सुरक्षित है।
राजा सिद्धार्थ के भवन में पुनः वाद्यध्वनि होने लगी । वह जनाकीर्ण हो गया । विविध प्रकार से आमोद-प्रमोद होने लगा ।
उस समय गर्भस्थ महावीर ने माता-पिता पर अनुकंपा कर यह अभिग्रह ग्रहण कर लिया- जब तक माता-पिता जीवित रहेंगे, तब तक मैं श्रमण नहीं बनूंगा ।
त्रिशला क्षत्रियाणी के गर्भ के नौ माह और साढ़े सात रात पूर्ण हुए। ग्रीष्म का पहला महीना। दूसरा पक्ष - चैत्रमास का शुक्लपक्ष । त्रयोदशी तिथि । हस्तोत्तरा नक्षत्र का योग । उस समय त्रिशला क्षत्रियाणी ने स्वस्थ अवस्था में स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया।
जिस रात्रि में त्रिशला क्षत्रियाणी ने श्रमण भगवान महावीर को जन्म दिया, उस रात्रि में भवनवासी, वाणमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव-देवियों के नीचे आने और ऊपर जाने से एक दिव्य उद्योत हो गया। उस रात्रि में देवोंका सन्निपात -समागम और उनकी ध्वनियों से वातावरण गुंजित हो गया ।
जिस रात्रि को त्रिशला क्षत्रियाणी ने श्रमण भगवान महावीर को जन्म दिया, उस रात्रि को बहुत से देव - देवियों अमृत, गंध, चूर्ण, हिरण्य और रत्नों की विपुल वर्षा
की।