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________________ आत्मा का दर्शन एवं खलु तुमं देवाप्पिए! नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्टमाणं इंदियाणं विइक्कंताणं अम्हं कुलकेउं अम्हं कुलदीवं .......कंतं पियं सुदंसणं दारयं पयाहिसि ।.... से वि य णं दारए.... जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कंते विच्छिन्नविउलबलवाहणे रज्जवई राया भविस्स ।.... ३. तए णं सिद्धत्थे खत्तिए ...... ते सुमिणलक्खणपाढए एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया! अज्ज तिसला खत्तियाणी..... इमेयारूवे ओराले चोइस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा, तं जहागयवसह... । तं एतेसिं देवाणुप्पिया ! ओरालाणं चोदसमहासुमिणा के मण्णे कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ? तए णं ते सुमिणलक्खणपाढगा...... सिद्धत्थं खत्तियं एवं वयासी..... तिसला खत्तियाणी....... कंतं पियदंसणं सुरूवं दारयं पयाहि ..... से वि य णं दारए.....जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे....... चाउरंतचक्कवट्टी रज्जवई राया भविस्सर । जिणे वा तेलोक्कनायए धम्मवरचक्कवट्टी । तणं से सिद्धत्थे राया तेसिं सुविणलक्खणपाढगाणं अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिए..... ते सुमिणलक्खणपाढए .... विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयति, दलइत्ता पडिविसज्जेइ । ४. तए णं भगवं सण्णिगब्भे माउअणुकंपणट्ठाए णिच्चले णिक्कंपे णिप्फंदे णीरेए अल्लीणपलीणगुत्ते यावि होत्था। ४२ ५. तए णं सा तिसला एवं वयासी-हडे मे गब्भे, एवं चुए गलिए। एस मे गब्भे पुव्विं एयइ इयाणिं णो एयइत्ति कट्टु ओहयमणसंकप्पा चिंतासोगसागरप्पविट्ठा करतलपल्लत्थमुही अट्टज्झागोवगया भूमिगयदिट्ठीया झियाइ । खण्ड - २ देवानुप्रिये! नौमास और साढ़े सात अहोरात्र बीतने पर तुम हमारे कुलकेतु, कलदीप, कांत, प्रिय और सुदर्शन पुत्र को जन्म दोगी। वह बालक युवावस्था में पराक्रमी राजा होगा। राजा सिद्धार्थ ने स्वप्न पाठकों से कहा- देवानुप्रिय ! आज त्रिशला क्षत्रियाणी ने गज, वृषभ आदि चवदह महास्वप्न देखे हैं। देवानुप्रिय ! उन उदार चवदह महास्वप्नों का क्या फल विशेष होगा ? स्वप्नपाठकों ने राजा सिद्धार्थ से कहा-इन स्वप्नों के अनुसार त्रिशला क्षत्रियाणी अर्थलाभ आदि के साथ कांत, प्रियदर्शन वाले सुन्दर बालक को जन्म देगी। वह बालक युवावस्था को प्राप्त कर पराक्रमी, चातुरन्त चक्रवर्ती राजा बनेगा अथवा त्रिलोकनायक श्रेष्ठ धर्मचक्रवर्ती जिन होगा। गर्भकाल में संकल्प राजा सिद्धार्थ स्वप्न पाठकों से स्वप्नों का यह अर्थ सुनकर हृष्ट, तुष्ट और आनंदित हुआ और स्वप्नपाठकों को जीवनयापन योग्य विपुल प्रीतिदान देकर विसर्जित किया। महावीर जब गर्भ में थे उस समय 'मेरे हलन चलन से माता को कष्ट न हो' यह सोच निश्चल, निष्कंप, निःस्पंद और सर्वथा गुप्त हो गए। त्रिशला ने उस स्थिति का अनुभव कर कहा-मेरे गर्भ का हरण हो गया है अथवा गर्भच्युत और गलित हो गया है । मेरा गर्भ पहले हलन चलन कर रहा था। अब हलनचलन नहीं कर रहा है। इन विचारों के साथ त्रिशला उदास हो गई। चिंतित हो गई और शोक - सागर में निमज्जित हो गई। वह हथेली पर मुंह टिका आर्तध्यान में
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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