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________________ महावीर और उनका परिवार त्रिशला का स्वप्न दर्शन १. तिसला खत्तियाणी.. . पुव्वरत्तावरत्त-काल समयंसि सुत्तजागरा ओहीरंमाणी - ओहीरमाणी इमेयारूवे ओराले जाव चोइस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा । तं जहा गयवसहसी अभिसेय दामससिदिणयरं झयं कुंभं । पउमसरसाग़रविमाण-भवण रयणुच्चय सिहिं च ॥ तर णं सा तिसला ख़त्तियाणी.. . जेणेव सयनिज्जे जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छइ । ...... सिद्धत्वं खत्तियं ताहिं इट्ठाहिं... गिराहिं संलवाणी-संलवमाणी पडिबोहेर । तए णं सा तिसला खत्तियाणी....... सिद्धत्थं । खत्तियं....एवं ववासी एवं खलु अहं सामी !...... चोदसमहासुमिणे पासित्ताणं पडिबुछा, तं जहा - गयवसह...... । तं एतेसिं सामी । ओरालाणं चोइसन्हं महासुमिणाणं के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्स ? २. तए णं से सिद्धत्थे राया तिसलाए खत्तियाणीए अंतिए एयमठ्ठे सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्ते आनंदिए । सिं सुमिणाणं अत्थोग्गहं करेइ, करेत्ता तिसलं खत्तियाणिं.... एवं वयासी-आरोला णं तुमे देवाणुप्पिए! सुमिणा दिट्ठा। कल्लाणा णं तुमे देवाणुप्पिए! सुमिणा दिट्ठा ।......तं अत्थलाभो देवाणुप्पिए ! भोगलाभो देवाणुप्पिए ! पुत्तलाभो देवाप्पिए! सोक्खलाभो देवाणुप्पिए! रज्जलाभो देवाप्पिए! त्रिशला क्षत्रियाणी एक दिन मध्यरात्रि के समय अर्द्ध निद्रावस्था में चवदह महास्वप्न देखकर जागृत हुई। यथा-हाथी, वृषभ, सिंह, लक्ष्मी, फूलों की माला, चांद, सूर्य, ध्वजा, कुम्भ, पद्मसरोवर, सागर, देवविमान, रत्नराशि और अग्नि । त्रिशला क्षत्रियाणी हृष्ट, तुष्ट और आनंदित चित्त हो राजा सिद्धार्थ की शय्या के पास गई। इष्ट, कांत, प्रिय और मनोज्ञ शब्दों से सिद्धार्थ को जगाया। त्रिशला ने राजा सिद्धार्थ से कहा - स्वामिन्! मैं आज गज, वृषभ आदि चवदह महास्वप्न देखकर जागृत हुई हूं । स्वामिन्! इन उदार चवदह महास्वप्नों का क्या कल्याणकारी फल विशेष होने वाला है ? राजा सिद्धार्थ त्रिशला क्षत्रियाणी की इस बात को सुनकर हृष्ट, तुष्ट और आनंदित हुए। सिद्धार्थ ने स्वप्नों का अर्थावग्रह किया और त्रिशला क्षत्रियाणी से कहा–देवानुप्रिये ! तुमने उदार स्वप्न देखे हैं। कल्याणकारी स्वप्न देखे हैं। इन सपनों के अनुसार अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ, सौख्यलाभ और राज्यलाभ होगा।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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