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प्रायोगिक दर्शन
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५६. ते मे तिगिच्छं कुव्वंति चाउप्पायं जहाहियं । न य दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अणाहया |
५७. पिया मे सव्वसारं पि दिज्जाहि मम कारणा । न य दुक्खा विमोएइ एसा मज्झ अणाहया ॥
५८. माया य मे महाराय ! पुत्तसोगदुहट्टिया । न य दुक्खा विग़ोएइ एसा मज्झ अणाहया ||
५९. भायरो मे महाराय ! सगा जेट्ठकणिट्ठगा । नय दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अणाहया ||
६०. महणीओ मे महाराय ! सगा जेट्ठकणिट्ठगा । न य दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अणाहया ॥
६९. भारिया मे महाराय ! अणुरत्ता अणुव्वया । अंसुपुण्णेहिं नयणेहिं उरं मे परिसिंचई ॥
६२. अन्न पाणं च ण्हाणं च गंधमल्लविलेवणं । भए नायमणायं वा सा बाला नोवभुंजई ॥
६३. खणं पि मे महाराय ! पासाओ वि न फिट्टई । नय दुक्खा विमोएइ एसा मज्झ अणाहया ||
६४. तओ हं एवमाहंसु दुक्खमा हु पुणो पुणो । वेयणा अणुभविडं जे संसारम्मि अनंतए ॥
६५. सहं च जइ मुच्चेज्जा वेयणा विउला इओ । खंतो दंतो निरारंभो पव्वए अणगारियं ॥
अ. १२ : आत्मवाद
प्राणाचार्य मेरी चिकित्सा करने के लिए उपस्थित हुए।
उन्होंने जैसे मेरा हित हो वैसे चतुष्पाद चिकित्सा (वैद्य, रोगी, औषध और परिचारक) की। किन्तु वे मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सके यह मेरी अनाथता है।
मेरे पिता ने मेरे लिए उन प्राणाचार्यों को बहुमूल्य वस्तुएं दीं। किन्तु वे (पिता) मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सके- यह मेरी अनाथता है।
महाराज ! मेरी माता पुत्रशोक के दुःख से पीड़ित होती हुई भी मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सकी यह मेरी अनाथता है।
महाराज! मेरे बड़े-छोटे सगे भाई भी मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सके - यह मेरी अनाथता है ।
महाराज ! मेरी बड़ी-छोटी सगी बहिनें भी मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सकीं - यह मेरी अनाथता है।
महाराज! मुझ में अनुरक्त और पतिव्रता मेरी पत्नी आंसू भरे नयनों से मेरी छाती को भिगोती रही।
वह बाला मेरे प्रत्यक्ष या परोक्ष में अन्न, पान, स्नान, गंध, माल्य और विलेपन का भोग नहीं कर रही थी ।
महाराज । वह क्षण भर के लिए मुझ से दूर नहीं हो रही थी । किन्तु वह मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सकीयह मेरी अनाथता है।
तब मैंने इस प्रकार कहा- इस अनंत संसार में बारबार दुस्सह वेदना का अनुभव करना होता है।
इस विपुल वेदना से यदि मैं एक बार ही मुक्त हो जाऊं तो क्षांत, दांत और निरारंभ होकर अनगारवृत्ति को स्वीकार कर लूं।