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________________ आत्मा का दर्शन ५९४ खण्ड-१ आत्मकर्तृत्व ३४.अज्जोति! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे श्रमण भगवान महावीर ने गौतम आदि श्रमण निग्रंथों णिग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी-किं भया पाणा? को आर्य इस संबोधन से आमंत्रित कर कहा-आयुष्मन समणाउसो! श्रमणो! जीव किससे भयभीत होते हैं? . गोतमादी समणा णिग्गंथा समणं भगवं महावीर गौतम आदि श्रमण निग्रंथ भगवान महावीर के निकट उवसंकमंति, उवसंकमित्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता आए। वन्दन-नमस्कार किया और बोले-देवानुप्रिय! हम णमंसित्ता एवं वयासी-णो खलु वयं देवाणुप्पिया! इस अर्थ को नहीं जान रहे हैं। नहीं देख रहे हैं। यदि एयमट्ठं जाणामो वा पासामो वा। तं जदि णं आपको इस अर्थ का परिकथन करने में खेद न हो तो हम देवाणुप्पिया! एयमह्र णो गिलायंति परिकहित्तए, आपके पास इसे जानना चाहेंगे। . तमिच्छामो णं देवाणुप्पियाणं अंतिए एयमझें जाणित्तए। अज्जोति! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे श्रमण भगवान महावीर ने गौतम आदि श्रमण निग्रंथों निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी को सम्बोधित कर कहादुक्खभया पाणा समणाउसो! आयुष्मन् श्रमणो! जीव दुःख से भयभीत होते हैं। से णं भंते! दुक्खे केण कडे? भंते! दुःख किसने किया है? जीवेणं कडे पमादेणं। जीव ने किया है अपने प्रमाद से। से णं भंते! दुक्खे कहं वेइज्जति? भंते! दुःख का वेदन कैसे होता है? अप्पमाएणं। जीव के अपने अप्रमाद से। जीवाणं भंते! किं अत्तकडे दुक्खे? परकडे दु- भंते! जीवों के दुःख आत्मकृत होता है ? परकृत होता क्खे? तदुभयकडे दुक्खे? है? अथवा उभयकृत होता है ? गोयमा! अत्तकडे दुक्खे, नो. परकडे दुक्खे, नो गौतम ! दुःख आत्मकृत होता है। न परकृत होता है, तदुभयकडे दुक्खे। न उभयकृत होता है। . जीवा णं भंते! किं अत्तकडं दुक्खं वेदेति ? परकडं भंते! जीव आत्मकृत दुःख का वेदन करता है? दुक्खं वेदेति? तदुभयकडं दुक्खं वेदेति? परकृत दुःख का वेदन करता है? अथवा उभयकृत दुःख का वेदन करता है? गोयमा! अत्तकडं दुक्खं वेदेति, नो परकडं दुक्खं गौतम ! जीव आत्मकृत दुःख का वेदन करता है। न वेदेति, नो तदुभयकडं दुक्खं वेदेति। परकृत दुःख का वेदन करता है, न उभयकृत दुःख का वेदन करता है। संकल्प द्वारा वेदना का उपशमन मुनि अनाथी और राजा श्रेणिक ३५.पभूयरयणो राया सेणियो मगहाहिवो। प्रचुर रत्नों से सम्पन्न, मगध का अधिपति राजा विहारजत्तं निज्जाओ मण्डिकच्छिंसि चेइए॥ श्रेणिक मण्डीकुक्षि नाम के उद्यान में विहारयात्रा (क्रीडायात्रा) के लिए गया। ३६.नाणादुमलयाइण्णं . नाणाकुसुमसंछन्नं नाणापक्खिनिसेवियं। उज्जाणं नन्दणोवमं॥ वह उद्यान नाना प्रकार के दूमों और लताओं से आकीर्ण. नाना प्रकार के पक्षियों से आश्रित, नाना
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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