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________________ आत्मा का दर्शन ५९२ खण्ड-१ क्या जीव देखा जा सकता है? २९.तए णं पएसी राया केसि कुमारसमणं एवं प्रदेशी-भंते! आप निपुण हैं, दक्ष हैं, ज्ञानी हैं, कुशल वयासी-तुब्भे णं भंते! इय छेया दक्खा पत्तट्ठा। हैं, महामति सम्पन्न हैं, उपदेश देने में कुशल हैं। क्या कुसला महामई विणीया विण्णाणपत्ता उवएस- आप मुझे जीव को सरीर में से निकालकर दिखाने में लद्धा। समत्था णं भंते! ममं करयलंसि वा समर्थ हैं जैसे मेरी हथेली में आंवला? आमलयं जीवं सरीराओ अभिणिवटित्ताणं उवदंसित्तए। ३०.तेणं कालेणं तेणं समएणं पएसिस्स रण्णो अदूरसामंते वाउयाए संवुत्ते। तणवणस्सइकाए एयइ वेयइ चलइ फंदइ घट्टइ उदीरइ, तं तं भावं परिणमइ। राजा प्रदेशी जिस समय कुमारश्रमण केशी से बात कर रहा था, उस समय तेज हवा चल रही थी। तृण और पौधे हिल रहे थे। कंपित हो रहे थे, एक दूसरे को छू रहे थे। ३१.तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी- कुमारश्रमण केशी ने प्रदेशी से कहा-प्रदेशी! क्या पाससि णं तुमं पएसी राया! एयं तणवणस्सइकायं, तुम हिलते हुए तृण और पौधों को देख रहे हो? एयंत वेयंतं चलंतं फंदंतं घटतं उदीरंतं तं तं भावं परिणमंतं? हंता पासामि। हां, देखता हूं। जाणासि णं तुमं पएसी! एयं तणवणस्सइकायं किं प्रदेशी! तुम जानते हो तृण और पौधों को कौन हिला देवो चालेइ?......... रहा है? क्या कोई देव हिला रहा है? हंता जाणामि-णो देवो चालेइ।..... वाउयाए भंते! मैं जानता हूं, तृण और पौधों को कोई देव नहीं चाले। हिला रहा है। हवा हिला रही है। पाससि णं तुमं पएसी! एयस्स वाउकायस्स प्रदेशी! क्या तुम रूप, कर्म, राग, मोह, वेद, लेश्या सरूविस्स सकम्मस्स सरागस्स समोहस्स एवं शरीर धारण करनेवाली इस हवा को देख रहे हो? . सवेयस्स सलेसस्स ससरीरस्स रूवं? णो तिणठे समझें। नहीं। जइ णं पएसी! एयस्स वाउकायस्स सरूविस्स प्रदेशी ! जब तुम रूप, कर्म, राग आदि से युक्त वायु सकम्मस्स सरागस्स समोहस्स सवेयस्स-' को भी नहीं देख रहे हो तो प्रदेशी! मैं तुम्हारी हथेली में सलेसस्स ससरीरस्स रूवं न पाससि, तं कहं णं रखे आंवले की भांति शरीर में स्थित अरूपी जीव को पएसी! तव करयलंसि वा आमलगं जीवं शरीर से अलग करके कैसे दिखा सकता हूं। अतः सरीराओ अभिणिवटित्ताणं उवदंसिस्सामि? तं प्रदेशी! तुम श्रद्धा करो-जीव अन्य है, शरीर अन्य है। सदहाहि णं तुमं पएसी! जहा-अण्णो जीवो अण्णं जीव और शरीर एक नहीं है। सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। जीवत्व की समानता हाथी और कुंथु ३२.तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं भंते! क्या हाथी और कुंथु में जीव एक समान है?
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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