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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-४
दक्ष पुरुष क्या उस समय भार को उठा सकता है, जब उसके काबर का दंड, रस्सियां और पिटक जीर्ण-शीर्ण हों, उनके घुन लग गए हों?
सिप्पोवगए जुण्णियाए दुब्बलियाए घुणक्खइयाए विहंगियाए, जुण्णएहिं दुब्बलएहिं घुणक्खइएहिं सिढिल-तयापिणद्धएहिं सिक्कएहिं, जुण्णएहिं दुब्बलएहिं घुणक्खइएहिं पच्छियापिडएहिं पभू एगं महं अयभारगं वा तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए? णो तिणठे समझें। कम्हा णं? भंते! तस्स पुरिसस्स जुण्णाई उवगरणाइं भवंति।
नहीं। प्रदेशी! क्यों?
भंते! क्योंकि उसके पास भार उठाने के उपकरण जीर्ण-शीर्ण हैं।
प्रदेशी! इसी प्रकार वह वृद्ध जर्जर देह वाला व्यक्ति लोहे, तांबे अथवा सीसे के एक क्विन्टल भार को नहीं उठा सकता। अतः तुम इस बात पर श्रद्धा करो-जीव और शरीर एक नहीं है।
एवामेव पएसी! से चेव पुरिसे जुण्णे जराजज्जरियदेहे......नो पभू एगं महं अयभारगं वा तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए, तं सहहाहि णं तमं पएसी! जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं।
२३.तए णं पएसी राया केसि कुमारसमणं एवं
वयासी-अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ।
भंते! यह आपकी प्रज्ञापना है। पर एक कारण है इसीलिए मैं आपके कथन से सहमत नहीं हूं।।
जीवित चोर और मृत चोर का मापन २४. एवं खलु भंते! अहं अण्णया कयाइ बाहिरियाए एक दिन मैं बाहरी उपस्थानशाला में बैठा था। नगर
उवट्ठाणसालाए..... विहरामि। तए णं मम रक्षक मेरे सामने चोर को लेकर उपस्थित हुए। मैंने चोर णगरगुत्तिया चोरं उवणेति। तए णं अहं तं पुरिसं को जीवित अवस्था में तोला। उसके शरीर को किचित् भी जीवंतगं चेव तुलेमि, तुलेत्ता छविच्छेयं अकुव्वमाणे क्षतविक्षत किए बिना निष्प्राण बनाया। उस स्थिति में उसे जीवियाओ ववरोवेमि। मयं तुलेमि। णो चेव णं तोला। दोनों अवस्थाओं के तोल में कोई अन्यत्व, तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स, मुयस्स नानात्व, न्यूनता, तुच्छता, गुरुता और लघुता नहीं थी। वा तुलियस्स केइ अण्णत्ते वा नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गुरुयत्ते वा लहुयत्ते वा।।
जति णं भंते! तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा भंते! जीवित और मृत व्यक्ति के तोल में कोई गुरुता - तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स केइ......गुरुयत्ते ___और लघुता होती तो मैं इस बात पर श्रद्धा, प्रतीति और वा लइयत्ते वा, तो णं अहं सद्दहेज्जा, पत्तिएज्जा रुचि करता-जीव अन्य है और शरीर अन्य है। जीव और रोएज्जा जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो शरीर एक नहीं है। तज्जीवो तं सरीरं। जम्हा णं भंते! तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा भंते! जीवित और मृत व्यक्ति के तोल में कोई तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स नत्थि केइ...... तुच्छता, गुरुता और लघुता नहीं है।, इसलिए मेरा पक्ष गुरुयत्ते वा लहुयत्ते वा, तम्हा सुपतिठिया मे स्थापित है-जीव और शरीर एक है।