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________________ प्रायोगिक दर्शन ५८७ अत्तोवर णो पभू पंचकंडयं निसिरित्तए । तं सहाहि णं तुमं पएसी जहा - अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं । २१. तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी-अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा । इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ । तरुण पुरुष और लोहभार भंते! से जहाणामए - केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगते पभू एगं महं अयभारगं वा तयभारगं वा सीसंगभारगं वा परिवहित्तए ? हंता पभू । सो चेवणं भंते! पुरिसे जुण्णे जराजज्जरियदेहे..... नो पभू एवं महं अयभारगं वा तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए । जति णं भंते! सच्चेन पुरिसे जुण्णे जराजज्जरियदेहे .... पभू एगं महं अयभारगं...... परिवहित्तए, तो णं अहं सहहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा, जहा - अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं । जम्हा णं भंते! सच्चेव पुरिसे जराजज्ज़रियदेहे .....नो पभू एगं महं अयभारगं वा तयभार वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए, तम्हा सुपतिट्ठिता मे पइण्णा जहा - तज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं । तरुण पुरुष और काबर २२. तरणं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासीसे जहाणामए केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए णवियाए विहंगियाए णवएहिं सिक्कएहिं णवएहिं पच्छियापिड एहिं पहू एवं महं अयभारगं वा तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए ? 'हंता पभू । पएसी ! से चेव णं पुरिसे तरुणे जाव निउण अ. १२ : आत्मवाद बाल्यावस्था में अपर्याप्त उपकरण वाला - अविकसित अवयव वाला होने के कारण एक साथ पांच बाणों को नहीं छोड सकता। अतः तुम इस बात पर श्रद्धा करो - जीव अन्य है, शरीर अन्य है। जीव और शरीर एक नहीं है। भंते! यह आपकी प्रज्ञापना है। पर एक कारण है, इसलिए मैं आपके कथन से सहमत नहीं हूं । भंते! क्या कोई शक्तिशाली तरुण और सूक्ष्म शिल्प में दक्ष पुरुष एक क्विन्टल लोहे, तांबे अथवा सीसे के भार को उठाने में समर्थ है ? हां, समर्थ है। भंते! वही पुरुष जब वृद्ध होता है, जरा से जर्जर देहवाला होता है। तो वह एक क्विन्टल लोहे, तांबे अथवा सीसे के भार को उठाने में समर्थ नहीं होता है। भंते! यदि वह वृद्ध पुरुष उस भार को उठाने में समर्थ होता तो मैं यह श्रद्धा, प्रतीति और रुचि करता - जीव अन्य है, शरीर अन्य है, जीव और शरीर एक नहीं है। भंते! वह वृद्ध पुरुष भार को उठाने में असमर्थ है। इसलिए मेरा पक्ष - स्थापित है - जीव और शरीर एक है। वे अलग-अलग नहीं हैं। प्रदेशी ! शक्तिशाली तरुण और शिल्प में दक्ष पुरुष क्या भार उठाने में तभी समर्थ होता है, जब उसका काबर नया हो, रस्सियां नई हों और पिटक नए हों ? हां। प्रदेशी ! वह शक्तिशाली तरुण और सूक्ष्म शिल्प में
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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