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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-४
नो तिणढे समठे? एवामेव पएसी! जीवो वि अप्पडिहयगई पुढविं भिच्चा सिलं भिच्चा पव्वयं भिच्चा बहियाहिंतो अंतो अणुपविसइ। तं सहहाहि णं तुम पएसी! जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो तज्जीवो तं सरीरं।
भंते! नहीं।
प्रदेशी! इसी प्रकार जीव गति भी अप्रतिहत होती है। वह पृथ्वी, शिला, पर्वत को भेद कर बाहर से भीतर चला आता है। अतः प्रदेशी! तुम इस बात पर श्रद्धा करो- जीव अन्य है, शरीर अन्य है। जीव और शरीर एक नहीं है।
प्रदेशी-भंते! यह आपकी प्रज्ञापना है। पर एक कारण है इसलिए मैं आपके कथन से सहमत नहीं हूं।
१९.तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं
वयासी-अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा। इमेणं
पुण कारणेणं नो उवागच्छइतरुण पुरुष और बाण
भंते! से जहाणामए केइ पुरिसे तरुणे बलवं.... पभू पंचकंडगं निसिरित्तए? हंता पभू। जति णं भंते! सच्चेव पुरिसे बाले....पभू होज्जा पंचकंडगं निसिरित्तए तो णं अहं सहहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा, जहा-अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। जम्हा णं भंते! सच्चेव पुरिसे.....णो पभू पंचकंडयं निसिरित्तए। तम्हा सुपइट्ठिया मे पइण्णा जहा-तज्जीवो तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं।
भंते! कोई बलिष्ठ और तरुण युवक पांच बाणों को एक साथ छोड़ने में समर्थ है? .
हां, समर्थ है।
भंते! यदि वह पुरुष बाल्यावस्था में ऐसा करने में समर्थ होता तो मैं श्रद्धा, प्रतीति और रुचि करता। जीव अन्य है, शरीर अन्य है। जीव और शरीर एक नहीं है।
भंते! बाल्यावस्था में ऐसा होता नहीं, इसलिए मेरा पक्ष स्थापित है-जीव और शरीर एक है। वे अलग-अलग नहीं हैं।
हां।
२०.तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी- प्रदेशी! शक्तिशाली, तरुण और सूक्ष्म शिल्प में दक्ष
से जहाणामए केइ पुरिसे तरुणे बलवं.... युवक पांच बाणों को तब एक साथ छोड़ सकता है, जब णिउणसिप्पोवगए णवएणं धणुणा नवियाए जीवा, उसका धनुष नया हो, बाण नया हो और जीवा नई हो? नवएणं उसुणा पभू पंचकंडगं निसिरित्तए? हंता पभू। सो चेव णं पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए प्रदेशी! यदि उस शक्तिशाली तरुण और सूक्ष्म कोरिल्लएणं धणुणा कोरिल्लयाए जीवाए शिल्प में दक्ष युवक के पास धनुष, बाण और जीवा कोरिल्लएणं उसुणा पभू पंचकंडगं निसिरित्तए? पुरानी हो तो क्या वह एक साथ पांच बाणों को छोड़
सकता है? णो तिणठे समठे।
नहीं। कम्हा णं?
प्रदेशी ! क्यों नहीं? भंते! तस्स पुरिसस्स अपज्जत्ताई उवगरणाई भंते! क्योंकि उस पुरुष के पास उपकरण-साधनहवंति।
सामग्री पर्याप्त नहीं हैं। एवामेव पएसी! सो चेव पुरिसे बाले.... प्रदेशी! इसी प्रकार धनुष चलाने वाला पुरुष