________________
प्रायोगिक दर्शन
५८५
अ. १२ : आत्मवाद
है, इसलिए मैं आपके कथन से सहमत नहीं हूं।
वयासी अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं णो उवागच्छइ।
भंते! मैं एक दिन बाहरी उपस्थानशाला में बैठा था। नगर रक्षक चोर को पकड़ कर लाए।
मैंने उस चोर को मारकर लोहे की कुंभी में डलवा दिया और उसे सील बंध करवा दिया।
___कुछ दिनों बाद उस कुंभी को खोलकर देखा। मैं देखता हूं वह लोहकुंभी मानो कृमि कुंभी ही बन गई हो।
लोहकुंभी बनाम कृमिकुंभी १७.एवं खलु भंते! अहं अण्णया कयाइ बाहिरियाए
उवट्ठाणसालाए.....विहरामि। तए णं ममं णगरगुत्तिया.....चोरं उवणेति। तए णं अहं तं पुरिसं जीवियाओ ववरोवेमि, ववरोवेत्ता अओकुंभीए पक्खिवावेमि, अओमएणं पिहाणएण पिहावेमि। अएण य तउएण य कायावेमि, आयपच्चइएहिं पुरिसेहिं रक्खावेमि। तए णं अहं अण्णया कयाइ जेणेव सा कुंभी तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता तं अओकुंभिं- उग्ग- लच्छावेमि, तं अओकुंभिं किमिकुंभिं पिव पासामि। णो चेव णं तीसे अओकुंभीए केइ छिड्डे इ वा..... जतो णं ते जीवा बहियाहिंतो अणुपविट्ठा। जति णं तीसे अओकुंभीए होज्ज केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा, जतो णं ते जीवा
बहियाहिंतो अणुपविट्ठा, तो णं अहं सद्दहेज्जा . पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा-अण्णो जीवो अण्णं
सरीरं, णो तज्जीवो तं सरीरं। जम्हा णं तीसे अओकुंभीए णत्थि केइ छिड्डे इ वा विवरे इ वा अंतरे इ वा राई वा..... तम्हा सुपतिठिया मे पइण्णा जहा-तज्जीवो, तं सरीरं, नो अण्णो जीवो अण्णं सरीरं।
उस कुंभी में कोई छिद्र नहीं था, जिससे जीव बाहर से भीतर जा सके।
उस कुंभी में यदि जीव बाहर से भीतर आने का कोई छिद्र, विवर, अंतर और रेखा होती तो मैं इस बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि करता-जीव अन्य है, शरीर अन्य है। जीव और शरीर एक नहीं है।
भंते! उस कुंभी में कोई छिद्र, विवर, अंतर और रेखा, नहीं हुई। इससे मेरा पक्ष स्थापित है-जीव और शरीर एक है। वे अलग-अलग नहीं हैं।
प्रदेशी! क्या कभी तुमने धौंकनी से लोहे को धमा है अथवा धमवाया है?
हां।
लोहपिण्ड और अग्नि १८.तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी-अत्थि णं तुमे पएसी! कयाइ य अए घंतपुव्वे वा धम्मावियपुव्वे वा? हंसा अत्थि। से गुणं पएसी! अए धंते समाणे सव्वे अगणिपरिणए भवति? हंता भवति। अत्थि णं पएसी! तस्स अयस्स केइ छिड्डे इ वा...जेणं से जोई बहियाहिंतो अंतो अणुपविठे?
प्रदेशी! क्या धमने पर लोहा अग्निमय हो जाता है-क्या उसमें अग्नि पैठ जाती है?
हां। . प्रदेशी! क्या उस लोह पिंड में कोई छिद्र, विवर, अंतर और रेखा है जिससे अग्नि ने बाहर से भीतर प्रवेश किया?