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________________ आत्मा का दर्शन परिजणं एवं वयामि - एवं खलु देवाणुप्पिया ! पावाई कम्माई समायरेत्ता इमेयारूवं आवई पाविज्जामि, तं माणं देवाप्पिया! तुब्भे वि केइ पावाइं कम्माई समायरह । मा णं से वि एवं चेव आवई पाविज्जिहिह, जहा णं अहं । तस्स गं तुमं पएसी ! पुरिसस्स खणमवि एयमठ्ठे पज्जासि ? णो तिट्ठे समट्ठे । कम्हाणं ? जम्हा णं भंते! अवराही णं से पुरिसे । एवामेव पएसी ! तव वि अज्जए होत्था ।..... से णं इच्छइ माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएइ....... तं सद्दहाहि णं पएसी ! जहा अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो तं जीवो तं सरीरं । ५८२ १०. तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी-अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेण पुण कारणं ना उवागच्छइ ११. एवं खलु भंते! मम अज्जिया होत्था इहेव सेयवियाए नगरीए धम्मिया धम्मिट्ठा.....सा णं तुझं वत्तव्वयाए सुबहु पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णा । तीसे णं अज्जियाए अहं नत्तुए होत्था । इट्ठे..... तं जइ णं सा अज्जिया मम आगंतुं एवं वएज्जा - एवं खलु नत्तुया ! अहं तव अज्जिया होत्था । इहेव सेयवियाए नयरीए धम्मिया धम्मिट्ठा... धम्मेण चैव वित्तिं कप्पेमाणी...... विहरामि । तए णं अहं सुबहुं पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता.... देवलोएसु देवत्ताए उववण्णा । तं तुमं पित्तुया ! भवाहि धम्मिए.....तए णं तुमं पि एयं सुबहु पुण्णोवचयं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जिहिसि । खण्ड - ४ जाऊं-मैंने ऐसे पापकर्म किये हैं, जिनके कारण मुझे इ विपत्ति का सामना करना पड़ा है। इसीलिए तुम्हें यह चेताने आया हूं कि तुम ऐसे पापकर्म मत करना, जिससे तुम्हें ऐसी विपत्ति का सामना करना पड़े। प्रदेशी ! क्या तुम थोड़ी देर के लिए भी उस व्यक्ति को जाने की अनुमति दोगे ? नहीं । क्यों ? भंते! क्योंकि वह अपराधी है। प्रदेशी ! तुम्हारा दादा भी इसी तरह अपराधी है। वह इस मनुष्य लोक में आना चाहे तो भी नहीं आ सकता । अतः प्रदेशी ! तुम यह श्रद्धा करो - जीव अन्य है, शरीर अन्य है। जीव और शरीर एक नहीं है। प्रदेशी - भंते! यह आपकी प्रज्ञापना है। पर एक कारण है इसीलिए मैं आपके कथन से सहमत नहीं हूं। भंते! इसी श्वेतविका नगरी में मेरी दादी रहती थी। आपके मतानुसार वह धार्मिक व धर्मिष्ठ थी। आपकी वक्तव्यता के अनुसार उसने बहुत पुण्य का उपचय किया। वह मरकर किसी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुई है। मैं उस दादी का प्रिय पौत्र हूं। मेरी दादी यदि आकर कहे - पौत्र ! मैं तेरी वह दादी हूं। मैंने धर्म का आचरण किया। धर्म के आधार पर जीवन यापन किया। बहुत पुण्य का उपचय कर मैं देवलोक में देव रूप में उत्पन्न हूं। पौत्र ! तूं भी धर्माचरण कर। जिससे बहुत से पुण्य का उपचय कर देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होगा। .
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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