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प्रायोगिक दर्शन
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- से अज्जमं आगंतुं वज्जा - एवं खलु नत्तुया ! अहं तव अज्जए होत्था इहेव सेयाविया नयरीए अधम्मिए जाव नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेमि ।
तणं अहं सुबहु पावकम्मं कलिकलुसं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु नरएसु णेरइयत्ताए उववण्णे । तं मा णं नत्तुया ! तुमं पि भवाहि अधम्मिए जाव नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेहि । मा णं तुमं पि एवं चेव सुबहु पावकम्मं कलिकलुस समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु नरएसु.रइयत्ताए उववज्जिहिसि । तं जणं से अज्जए ममं आगंतुं वएज्जा तो णं अहं सहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा - अण्णो जीव अण्णं सरीरं, णो तं जीवो तं सरीरं । जम्हा णं से अज्ज़ए ममं आगंतुं नो एवं वयासी, तम्हा सुपइट्ठिया मम पइण्णा समणाउसो ! जहा तज्जीवो तं सरीरं ।
अपराधी को मुक्ति कहां ?
९. तए णं से केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी - अत्थि णं पएसी ! तव सूरियकंता णामं देवी?
हंता अत्थि ।
जणं तुमं पएसी ! तं सूरियकंतं देवि .....केणइ पुरिसेणं.... सद्धिं इट्ठे सद्द-फरिस - रस रूव-गंधे पंचविहे माणुसते कामभोगे पच्चणुब्भवमाणि पासिज्जासि । तस्स णं तुमं पएसी ! पुरिसस्स कं. डंड निव्वत्तेज्जासि ?
अहं णं भंते! तं पुरिसं हत्थच्छिण्णगं वा पायच्छिण्णगं वा सूलाइगं वा सूलभिण्णगं वा एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवएज्जा । अहं णं पएसी से पुरिसे तुमं एवं वदेज्जा - मा ताव सामी ! मुहुत्तागं हत्थच्छिण्णगं वा पायछण्णगं वा सूलाइगं वा सूलभिण्णगं वा एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवेहि।
जाव ताव अहं मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि
अ. १२ : आत्मवाद
वे यदि आकर मुझे यह कहें- पौत्र ! मैं इसी श्वेतविका नगरी में तेरा दादा था। मैंने धर्म का आचरण नहीं किया । अपने ही जनपद में रहने वाले नागरिकों से कर ग्रहण, भरण-पोषण आदि का व्यवहार सम्यक् प्रकार से नहीं किया।
उस कारण विपुल पाप का संचय कर मैं मरकर नरक गया हूं। मैं तुझे चेताने आया हूं कि तू पाप कर्म मत करना । प्रजा से अतिरिक्त कर मत लेना। यदि पाप कर्म करेगा तो तुझे भी नरक में जाना पड़ेगा ।
यदि मेरे दादा यहां आकर ऐसा कहें तो मैं आपके इस कथन पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि कर सकता हूं-'जीव अन्य है, शरीर अन्य है। जीव और शरीर एक नहीं है । '
यदि मेरे दादा आकर मुझे ऐसा नहीं कहते हैं तो मेरा पक्ष स्थापित है - जीव और शरीर एक है।
प्रदेशी ! तुम्हारे सूर्यकांता नाम की रानी है ?
हां भंते!
यदि तुम्हारी रानी सूर्यकान्ता किसी पुरुष के साथ मनोज्ञ, शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गंध इन पांच प्रकार के काम-भोगों को भोग रही हो। तुम उसे अपनी आंखों से देख लो तो प्रदेशी ! तुम उस पुरुष को क्या दंड दोगे ?
भंते! मैं उस पुरुष के हाथ- पावों का छेदन कर दूंगा । उसे फांसी पर चढ़ा दूंगा। एक ही झटके में उसे प्राणविहीन कर दूंगा।
प्रदेशी ! यदि वह व्यक्ति ऐसा कहे - तुम मुहूर्त भर के लिए मेरे हाथ-पांव मत काटो। मुझे फांसी पर मत चढ़ाओ। मेरे प्राण मत लूटो ।
मैं अपने मित्रों, ज्ञातिजनों आदि से कहकर आ