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आत्मा का दर्शन
अहे वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अण्णयरीओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि ।
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४. एवमेगेसिं जं णातं भवइ-अत्थि मे आया ओववाइए। जो इमाओ दिसाओ अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अणुदिसाओ जो आगओ अणुसंचरइ सोहं ।
जीव और शरीर की भिन्नता
५. तए णं से पएसी राया चित्तेणं सारहिणा सद्धिं केसिस्स कुमारसमणस्स अदूरसामंते उवविसइ । केसिं कुमारसमणं एवं वयासी - तुब्भं णं भंते ! समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा..... जहा - अण्णो जीव अण्णं सरीरं, णो तं जीवो तं सरीरं ?"
कुमारश्रमण केशी और राजा प्रदेशी
६. तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासीपएसी ! अम्हं समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा....जहा- अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो तं जीवो तं सरीरं ।
७. तए णं से पएसी केसिं कुमारसमणं एवं वयासीजति णं भंते! तुब्भं समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा.... जहा - अण्णो जीवो अण्णं सरीरं, णो तं जीवो तं सरीरं ।
८. एवं खलु ममं अज्जए होत्था । इहेव सेयवियाए णगरीए अधम्मिए जाव सयस्स वि य णं जणवयस्स नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेति । से णं तुब्भं वत्तव्वयाए सुबहु पावकम्मं कलिकलुसं समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु नरएस रइयत्ताए उववण्णे । तस्स णं अज्जगस्स अहं णत्तु होत्था - इट्ठे.....
अधोदिशा से आया हूं।
किसी अन्य दिशा से आया हूं।
अथवा अनुदिशा से आया हूं।
१. जीव अरूपी है। वह आंखों का विषय नहीं है, इसी कारण कुछ लोग जीव के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते। राजा प्रदेशी भी जीव के अस्तित्व के विषय में संदिग्ध था।
खण्ड- ४
कुछ मनुष्यों को यह ज्ञात होता है-मेरी आत्मा . पुनर्जन्म लेने वाली है। जो इन दिशाओं और अनुदिशाओं में अनुसंचरण करती है, जो सब दिशाओं और सब अनुदिशाओं से आकर अनुसंचरण करती है वह मैं हूं।
राजा प्रदेशी चित्त सारथी के साथ कुमारश्रमण कैशी . के पास बैठा। उसने कुमारश्रमण केशी से कहा-भंते! आप श्रमण निर्ग्रथों का क्या यह अभिमत है - जीव अन्य है, शरीर अन्य है। जीव और शरीर एक नहीं है ?
केशी - प्रदेशी ! हां, हमारा यह अभिमत है-जीव अन्य : है, शरीर अन्य है। जीव और शरीर एक नहीं है।
प्रदेशी - भंते! आपका यह अभिमत है-जीव अन्य है, शरीर अन्य है, जीव और शरीर एक नहीं है। मैं इससे सहमत नहीं हूं।
भंते! इसी श्वेतविका नगरी में मेरे दादा थे। आपके मतानुसार वे अधार्मिक थे। वे जनपद में रहने वाले नागरिकों से कर ग्रहण, भरण-पोषण आदि का व्यवहार सम्यक् प्रकार से नहीं करते थे। आपकी वक्तव्यता के अनुसार वे अत्यधिक पाप का संचय कर नरक में गए होंगे। मैं उनका पौत्र हूं। मैं उनके लिए बहुत प्रिय था।
कुमारश्रमण केशी और राजा प्रदेशी के बीच इस विषय में लंबी चर्चा हुई।