SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 600
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मा का अस्तित्व और पुनर्जन्म १. सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायंइहमेगेसिं नो सण्णा भवइ, तं जहापुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहंमंसि उड़ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, आहे वा दिसाओ आगओ अहमंसि अण्णयरीओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि अदिसाओ वा आगओ अहमंसि । एवमेसि णो णातं भवति अत्थि मे आया ओववाइए, णत्थि मे आया ओववाइए, के अहं आसी ? के वा इओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि ? पुण जाणेज्जा आत्मवाद सहसम्मुइयाए, परवागरणेणं, अण्णेसिं वा अंतिए सोच्चा, तं जहा पुरत्प्रिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि दक्खिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि आयुष्मान् ! मैंने सुना है। भगवान ने यह कहा - इस जगत् में कुछ मनुष्यों को यह संज्ञा नहीं होती, जैसेमैं पूर्व दिशा से आया हूं। दक्षिण दिशा से आया हूं। पश्चिम दिशा से आया हूं। उत्तर दिशा से आया हूं। ऊर्ध्व दिशा से आया हूं। अधो दिशा से आया हूं। किसी अन्य दिशा से आया हूं। अथवा अनुदिशा से आया हूं। इसी प्रकार कुछ मनुष्यों को यह ज्ञात नहीं होता मेरी आत्मा पुनर्जन्म लेने वाली है। मेरी आत्मा पुनर्जन्म नहीं लेने वाली है। मैं पिछले जन्म में कौन था । मैं यहां से च्युत होकर अगले जन्म में क्या होऊंगा ? कोई मनुष्य पूर्वजन्म की स्मृति से, पर- प्रत्यक्ष ज्ञानी के निरूपण से, अन्य - प्रत्यक्ष ज्ञानी के द्वारा श्रुत व्यक्ति के पास सुनकर, यह जान लेता है, जैसे मैं पूर्व दिशा से आया हूं। दक्षिण दिशा से आया हूं। पश्चिम दिशा से आया हूं। उत्तर दिशा से आया हूं। ऊर्ध्व दिशा से आया हूं।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy