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________________ प्रायोगिक दर्शन ५७३ अ. ११ : विश्वशांति और निःशस्त्रीकरण करेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते आणुपुल्वीए निकाला। आलोचना व प्रतिक्रमण कर क्रमशः समाधिस्थ कालगए। हो आयुष्य पूर्ण होने पर मृत्यु को प्राप्त हुआ। • वरुणे णं भंते! नागनत्तुए कालमासे कालं किच्चा भंते! वरुण मृत्यु को प्राप्त कर कहां गया है ? कहां कहिं गए? कहिं उववण्णे? उत्पन्न हुआ है? गोयमा! सोहम्मेकप्पे, अरुणाभे विमाणे देवत्ताए। गौतम ! सौधर्मकल्प के अरुणाभ विमान में देवरूप में उववण्णे। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं चत्तारि उत्पन्न हआ है। उस देवलोक में उत्पन्न होने वाले कुछ देव पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता। चार पल्योपम की स्थिति वाले होते हैं। गार वरुणमित्र का संकल्प ९. तए णं तस्स वरुणस्स नागनत्सुयस्स एगे नागदौहित्र वरुण का एक मित्र और बालमित्र था। पियबालवयंसए रहमूसलं संगामं संगामेमाणे एगेणं रथमूसल संग्राम में युद्ध करते हुए उस पर एक पुरुष ने पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे अत्थामे अबले तीव्र प्रहार किया। उससे उसका स्थाम, बल, वीर्य, अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति पुरुषकार और पराक्रम क्षीण हो गया। उसने वरुण को कटु वरुणं नागनत्तुयं रहमुसलाओ संगामाओ रथमूसल संग्राम से लौटते हुए देखा। पडिणिक्खममाणं पास। तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता जहा वरुणे जाव तुरए उसने अपने घोड़ों का निग्रह किया। निग्रह कर यावत् विसज्जेति। वरुण की तरह घोड़ों को विसर्जित कर दिया। पडसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता पुरत्थाभिमुहे कपड़े के बिछौने पर बैठा। पूर्वाभिमुख हो पल्यंकासन संपलियंकनिसण्णे करयल-परिग्गहियं दसनहं में बैठ मस्तक पर अंजलि टिकाकर बोलासिरसावत्तं मत्थए अजलिं कद एवं वयासीजाइ णं भंते! मम पियबालवयंसस्स वरुणस्स भंते! मेरे प्रिय बालमित्र वरुण के शील, व्रत, गुण, नागनत्तुयस्स सीलाई वयाई गुणाई वेरमणाई। वेरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास जिस रूप में है, पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं ताइ णं मम पि भवंतु मेरे भी वैसे हों। ऐसा संकल्प कर उसने कवच उतारा। त्ति कटु सण्णाहपटें मुयइ, मुइत्ता सल्लुद्धरणं शल्य निकाला और उसी की तरह अनशनपूर्वक मृत्यु का करेइ, करेत्ता आणुपुवीए कालगए। वरण किया। १०.वरुणस्स णं भंते! नागनत्तुयस्स पियबालवयंसए कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने? भंते! वरुण का वह प्रिय, बालमित्र मृत्यु को प्राप्त कर कहां गया है, कहां उत्पन्न हुआ है ? ११.गोयमा! सुकुले पच्चायाते। गौतम ! वह श्रेष्ठ मनुष्य कुल में उत्पन्न हुआ है। १२.ते णं भंते! मणुया निस्सीला निग्गुणा निम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा रुट्ठा परिकुविया समरवहिया अणुवसंता कालमासे कालं किच्चा कहिं गया? कहिं उववन्ना? भंते! उस रथमूसल संग्राम में शील, गुण, मर्यादा, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास से रहित एवं रुष्ट, कुपित, समर में एकचित्त, अनुपशांत योद्धा थे। वे मृत्यु को प्राप्त कर कहां गए हैं और कहां जाकर उत्पन्न हुए हैं ? १३.गोयमा! तत्थ णं दस साहस्सीओ एगाए गौतम! उस संग्राम में मरने वाले व्यक्तियों में दस
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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