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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-४
गाढप्पहारीकए समाणे आसुरुत्ते.....धणुं परामुसइ, उठाया और उसे कान तक खींचकर प्रतिपक्षी पर छोड़ा। परामुसित्ता उसु परामुसइ, परामुसित्ता एक ही प्रहार में उसे धराशायी बना परलोक पहुंचा दिया। आययकण्ण्णाययं उसुं करेइ, करेत्ता तं पुरिसं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवेइ। तए णं से वरुणे नागनत्तुए तेणं पुरिसेणं प्रतिपक्षी के तीव्र प्रहार से वरुण का स्थाम, बल, गाढप्पहारीकए समाणे अत्थामे अबले अवीरिए वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम क्षीण हो गया। उसे लगने. अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु लगा कि अब उसका शरीर टिकेगा नहीं, अतः उसने घोड़े तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं परावत्तेइ, की लगाम संभाली और रथ को युद्धभूमि से मोड़ा। परावत्तेत्ता रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खमति। एगंतमंतं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता तुरए एकांत स्थान पर पहुंच घोड़ों का निग्रह कर रथ को निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ ठहराया। नीचे उतरा। घोड़ों को विसर्जित किया। दर्भ का पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता तुरए मोएइ, मोएत्ता तुरए बिछौना तैयार किया। विसज्जेइ, विसज्जेत्ता दब्भसंथारगं संथरइ।
दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता पुरत्थाभिमुहे दर्भ के बिछौने पर पूर्वाभिमुख हो पर्यंकासन में बैठा। संपलियंकनिसण्णे करयलपरिग्गहियं दसनहं ____ मस्तक पर अंजलि टिकाकर बोला-नमस्कार हो अर्हत् सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी- भगवंतों को यावत् जो सिद्धिगति को प्राप्त कर चुके हैं। नमोत्थु णं अरहताणं भगवंताणं जाव सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपत्ताणं। नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स नमस्कार हो श्रमण भगवान महावीर को जो आदिकर आदिगरस्स जाव सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं हैं यावत् सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त करने वाले हैं। संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेष्टा हैं। मैं यहीं बैठा उन्हें वंदन धम्मोवदेसगस्स। वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं कर रहा हूं। वे वहीं से मुझे देखें। इहगए। पासउ मे से भगवं तत्थगए इहगयं। इति कटु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वह एक बार फिर वंदन-नमस्कार कर बोला-मैंने वयासी-पुवि पि णं मए समणस्स भगवओ महा- पहले ही श्रमण भगवान महावीर के पास स्थूल वीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए प्राणातिपात यावत् स्थूल परिग्रह का यावज्जीवन के लिए जावज्जीवाए, एवं जाव थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए प्रत्याख्यान किया है। अब मैं उनकी साक्षी से सर्व जावज्जीवाए। इयाणिं पि णं अहं तस्सेव भगवओ प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य का यावज्जीवन के महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि लिए प्रत्याख्यान करता हूं। जावज्जीवाए जाव मिच्छादसणसल्लं पच्चक्खामि जावज्जीवाए। सव्वं असण-पाण-खाइम-साइम-चउव्विहं पि सब प्रकार के अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य रूप आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए।
चतुर्विध आहार का भी यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान
करता हूं। जं पि य इमं सरीरं इठं कंतं पियं.....एयं पिणं जो शरीर इष्ट, कांत और प्रिय है उसका अंतिम चरिमेहिं ऊसास-नीसासेहिं वोसिरिस्सामि त्ति उच्छवास-निःश्वास पर्यंत व्युत्सर्ग करूंगा-ऐसा कटु सण्णाहपट्ट मुयइ, मुइत्ता सल्लुद्धरणं करेइ, मानसिक संकल्प कर उसने कवच उतारा। शल्य