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प्रायोगिक दर्शन
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मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव चाउरघंट आसरहं जुत्तामेव उवट्ठावेंति..... जेणेव वरुणे नागनत्तुए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता जाव तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।
तए णं से वरुणे नागनत्तुए..... जेणेव बाहिरिया उवठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे, महयाभड - चडगरविंदपरिक्खित्ते जेणेव रहमुसले संगामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहमुसलं संगामं ओयाए ।
तणं से वरुणे नागनत्तुए रहमुसलं संगामं ओयाए समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हs - कप्पति
रहमुसलं संगामं संगामेमाणस्स जे पुव्विं पहणइ से पडिहणित्तए । अवसेसे नो कप्पतीति अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ, अभिगेण्हेत्ता रहमुसलं संगामं संगामेति ।
तए णं तस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स रहमुसलं संगामं संगामेमाणस्स एगे पुरिसे सरिसए सरित्तए सरिव्वए सरिसभंडमत्तोवगरणे रहेणं पडिरहं हव्वमागए।
तणं से पुरिसे वरुणं नागनत्तुयं एवं वदासीपण भो वरुणा ! नागनत्तुया ! पहण भो वरुणा ! नागनत्तुया !
नो
तसे वरुणे नागनत्तु तं पुरिसं एवं वदासीखलु मे कप्पर देवाणुप्पिया ! पुव्विं अहयस्स पहणित्तए । तुमं चेव णं पुव्वि पहणाहि ।
तणं से पुरिसे वरुणेणं नागनत्तुएणं एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते..... धणुं परामुसइ, परामुसित्ता उसुं परामुसइ, परामुसित्ता ठाणं ठाति, ठिच्चा आययकण्णाययं उसुं करेइ, करेत्ता वरुणं नागनत्यं गाढप्पहारीकरे ।
तए णं से वरुणे नागनत्तुए तेणं पुरिसेणं
अ. ११ : विश्वशांति और निःशस्त्रीकरण
अधिकारी व्यक्तियों ने विनत हो वरुण की आज्ञा स्वीकार की। शीघ्र ही चातुर्घंटिक अश्वरथ को तैयार किया और वरुण को इसकी सूचना दी।
वरुण बाहरी उपस्थानशाला में आया । चातुर्घंटिक रथ पर आरोहण किया। चतुरंगिणी सेना और वीर योद्धाओं सेवेष्टित वह रथमूसल संग्राम में पहुंचा।
संग्राम स्थल पर वरुण ने संकल्प किया- मुझ पर जो प्रहार करेगा, मैं उसी पर प्रहार करूंगा जो मुझ पर प्रहार नहीं करता, उस पर मैं हथियार नहीं उठाऊंगा। इस संकल्प के साथ वह रथमूसल संग्राम में उतर गया ।
उसके सामने प्रतिपक्षी के रूप में एक योद्धा उपस्थित हुआ। वह आकार-प्रकार, त्वचा और अवस्था से वरुण के समान था। उसके शस्त्रास्त्र भी उस जैसे ही थे । वह वरुण की तरह ही रथ पर आरूढ़ था ।
उसने वरुण को चुनौती देते हुए कहा- ओ वरुण ! तू शस्त्र चला। देखता क्या है ? वरुण ! तू शस्त्र चला।
वरुण ने कहा- मैं पहले प्रहार नहीं कर सकता। मैंने यह संकल्प किया है - जो मुझ पर प्रहार नहीं करता, उस पर मैं हथियार नहीं उठाता । अतः तू ही पहले शस्त्र
चला ।
वरुण के ऐसा कहने पर क्रोध से तमतमायमान प्रतिपक्षी ने धनुष उठाया, बाण उठाया। वह धनुष चलाने की मुद्रा में खड़ा हुआ और कान तक बाण को खींचते हुए उसने नागदौहित्र वरुण पर गंभीर प्रहार किया।
उस प्रहार से कुपित हो वरुण ने धनुष-बाण हाथ में