________________
आत्मा का दर्शन
५६२
तए णं से धणे सत्थवाहे विजयं तक्करं एवं वयासी - एहि ताव विजया ! एगंतमवक्कमामो जेणं अहं उच्चार- पासवणं परिट्ठेवेमि ।
तए णं से विजए तक्करे धणं सत्थवाहं एवं वयासी - तुझं देवाणुप्पिया ! विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आहारियस्स अत्थि उच्चारे वा पासवणे वा । ममं णं देवाणुप्पिया ! इमेहिं बहूहिं कसप्पहारेहि य छिवापहारेहि य लयापहारेहि य तहाए य छुहाए य परज्झमाणस्स नत्थि केइ उच्चारे वा पासवणे वा । तं छंदेणं तुमं देवाणुप्पिया ! एगते अवक्कमित्ता उच्चारपासवणं परिट्ठवेहि । तणं से धणे सत्थवाहे विजएणं तक्करेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठइ । तणं से धणे सत्थवाहे मुहुत्तंतरस्स बलियतरागं उच्चारपासवणेणं उव्वाहिज्जमाणे विजयं तक्करं एवं वयासी - एहि ताव विजया ! एगंतमवक्कमामो जेणं अहं उच्चारपासवणं परिट्ठवेमि ।
तणं से विजए तक्करे धणं सत्थवाहं एवं वयासी - जइ णं तुमं देवाणुप्पिया ! ताओ विपुलाओ असण- पाण- खाइम साइमाओ संविभागं करेहि,
ओहं तुमेहिं सद्धिं गतं अवक्कमामि ।
तणं से धणे सत्थवाहे विजयं तक्करं एवं वयासी - अहं णं तुब्भं ताओ विपुलाओ असणपाणखाइम साइमाओ संविभागं करिस्सामि । तणं से विजये तक्करे धणस्स सत्थवाहस्स एयमठ्ठे पडिसुणेइ ।
तणं से धणे सत्थवाहे विजएण तक्करेण सद्धिं एगते अवक्कमइ । उच्चारपासवणं परिट्ठवेइ । आयंते चोक्खे परमसुइभूए तमेव ठाणं उवसंकमित्ता णं विहरइ ।
तए णं से धणे सत्थवाहे विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलाओ असण - पाण- खाइम - साइमाओ संविभागं करेइ ।
तणं से पंथ भोयणपिडयं गहाय..... जेणेव भद्दा सत्थवाही तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भदं सत्थवाहिं एवं वयासी- एवं खलु देवाणुप्पिए ! धणे सत्थवाहे तवपुत्तघायगस्स..... तओ विपुलाओ
खण्ड - ४
सार्थवाह धन ने विजय तस्कर से कहा- जरा आओ, हम एकांत में चलें। मैं बाधा का निवारण कर आऊं ।
विजय तस्कर ने सार्थवाह धन से कहा- देवानुप्रिय ! तुमने विपुल भोजन किया है। तुम्हें मल-मूत्र विसर्जन की अपेक्षा है। मैं इन बहुत से चाबुक के प्रहारों, एडी और बेंतों के प्रहारों तथा भूख और प्यास से पराभूत हूं। अतः मुझे मल-मूत्र विसर्जन की कोई अपेक्षा नहीं है। देवानुप्रिय ! तुम अपनी इच्छा से एकांत में जाओ और मल-मूत्र का विसर्जन करो।
विजय तस्कर का यह उत्तर सुन सार्थवाह धन मौन हो गया।
कुछ समय पश्चात् सार्थवाह धन के मल-मूत्र का वेग बलवान हो गया। उसने पुनः विजय तस्कर को साथ चलने के लिए कहा।
विजय तस्कर ने सार्थवाह धन से कहा- यदि तुम मुझे भोजन का हिस्सा दो तो मैं तुम्हारे साथ एकांत में चलूं ।
सार्थवाह धन ने विजय तस्कर से कहा- मैं तुम्हें भोजन का संविभाग दूंगा।
विजय तस्कर ने भी सार्थवाह धन की बात को स्वीकार किया।
सार्थवाह धन विजय तस्कर के साथ एकांत में गया। मल-मूत्र का विसर्जन किया। शौचकर्म कर अपने स्थान पर लौट आया।
अगले दिन सार्थवाह धन ने विजय तस्कर को भोजन का संविभाग दिया।
पंथक भोजन पिटक लेकर भद्रा सार्थवाही के पास पहुंचा, बोला- देवानुप्रिये ! सार्थवाह धन ने तुम्हारे पुत्र के हत्यारे उस विजय तस्कर को भोजन का संविभाग दिया है।