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आत्मा का दर्शन ५६०
खण्ड-४ नाम दारए इढे जाव उंबरपप्पं पिव दुल्लहे समान दुर्लभ है। सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए। तए णं सा भद्दा देवदिन्नं ण्हायं सव्वालंकार- मेरी पत्नी भद्रा ने देवदत्त को नहलाकर, सब प्रकार विभूसियं पंथगस्स हत्थे दलाइ जाव पायवडिए के अलंकारों से विभूषित कर पन्थक के हाथ में सौंपा
म निवेदेइ। तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया! यावत् पंथक ने सूचना दी कि देवदत्त खो गया है। देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गणग- देवानुप्रिय! मैं चाहता हूं, बालक देवदत्त की सर्वत्र खोज वेसणं कयं।
की जाए। तए णं ते नगरगोत्तिया धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता सार्थवाह धन की बात सुन नगर-आरक्षक सार्थवाह समाणा.... धणेण सत्थवाहेण सद्धिं रायगिहस्स धन को साथ ले राजगृह नगर के प्रवेश मार्गों एवं प्याउओं नगरस्स बहुसु अइगमणेसु य जाव पवासु य में बालक की खोज करते-करते नगर के बाहर आए। मग्गण-गवेसणं करेमाणा रायगिहाओ नगराओ जीर्ण उद्यान में स्थित भग्नकूप के पास पहुंचे। उसमें पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव । उन्होंने बालक देवदत्त के निष्प्राण, निश्चेष्ट और निर्जीव जिण्णुज्जाणे जेणेव भग्गकूवए तेणेव उवागच्छंति, शरीर को देखा। उवागच्छित्ता देवदिन्नस्स दारगस्स सरीरगं निप्पाणं निच्चेटें जीवविप्पजढं पासंति।
हा हा अहो! अकज्जमिति कट्ट देवदिन्नं दारगं हा! हा! अहो! अनर्थ हो गया-इस प्रकार कहते हुए भग्गकूवाओ उत्तारेंति, धणस्स सत्थवाहस्स हत्थे बालक देवदत्त के मृत शरीर को भग्नकूप से बाहर दलयंति।
निकाला और सार्थवाह धन के हाथ में सौंप दिया। तए णं ते नगरगुत्तिया विजयस्स तक्करस्स नगर आरक्षक विजय तस्कर के पद-चिह्नों का पयमग्गमणुगच्छमाणा जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव अनुगमन करते हुए मालुकाकच्छ में आए। वहां उन्होंने उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मालुयाकच्छगं विजय को रंगे हाथों पकड़ लिया। अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता विजयं तक्करं ससक्खं सहोढं सगेवेज्जं जीवग्गाहं गेण्हंति।......
जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवाग- उसे ले राजगृह नगर में प्रविष्ट हुए। नगर के दुराहों, च्छित्ता...सिंघाडग-तिग चउक्क-चच्चर-चउम्मुह- तिहारों, चौहारों, चौकों, चोहट्टों, राजमार्गों और गलियों महापहपहेसु कसप्पहारे य छिवापहारे य लयापहारेय से गुजरे। उसके शरीर पर बार-बार चाबुक और बेंतों के निवाएमाणा-निवाएमाणा छारं च धूलिं च कय-वरंच प्रहार कर रहे थे। उसके शरीर पर राख, कचरा और धूल उवरिं पकिरमाणा-पकिरमाणा महया-महया सद्देणं उछाल रहे थे और ऊंचे स्वरों में उद्घोषणा कर रहे
उग्रोसेमाणा एवं वयंति-एस णं देवाणुप्पिया!विजए थे-देवानुप्रियो! यह विजय चोर बालघातक और . नामं तक्करे....बालघायए बालमारए।
बालमारक है। तं नो खलु देवाणुप्पिया! एयस्स केइ राया वा देवानुप्रियो! इसको दंडित करने में राजा मंत्री का कोई रायमच्चे वा अवरज्झइ। नन्नत्थ अप्पणो सयाई दोष नहीं है। यह केवल अपने आचरणों से ही अपराधी कम्माई अवरज्झंति त्ति कटु जेणामेव चारगसाला बना है, यों कहते हुए वे उसे कारागृह में ले गए। उसे तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हडिबंधणं करेंति। हडिबंधन-काठ के खोड़े में डाल दिया। भत्तपाणनिरोहं करेंति, करेत्ता तिसंझं कसप्पहारे खाना-पीना बंद कर दिया और कारागृह-अधिकारी य छिवापहारे य लयापहारे य निवाएमाणा तीनों संध्याओं में उसे चाबुक और बेंतों से पीटने लगे। विहरंति।