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प्रायोगिक दर्शन
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अ. १० : वीतराग साधना
दासपुत्र पंथक को देवदत्त की ओर लापरवाह बना हुआ देखा। इधर-उधर दिशावलोकन किया। बालक देवदत्त को उठाया। बगल में छिपाया। उत्तरीय वस्त्र से ढका। अत्यंत शीघ्र गति से राजगृह नगर के अपद्वार से बाहर निकला और जीर्ण उद्यान के भग्नकूप के पास पहुंचा।
बालक देवदत्त को मारकर उसके सब गहने उतारे और उसके मृत शरीर को भग्नकूप में डाल दिया। स्वयं मालुका कच्छ में जाकर छिप गया। निश्छल, निःस्पन्द और मौन हो वहीं दिन बिताने लगा।
पंथयं दासंचेडयं पमत्तं पासइ, पासित्ता दिसालोयं करेइ, करेत्ता देवदिन्नं दारगं गेण्हइ, गेण्हित्ता कक्खंसि अल्लियावेइ, अल्लियावेत्ता उत्तरिज्जेणं पिहेइ, पिहेत्ता सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं रायगिहस्स नगरस्स अवहारेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव जिण्णुज्जाणे जेणेव भग्गकूवए तेणेव उवागच्छइ। देवदिन्नं दारयं जीवियाओ ववरोवेइ, ववरोवेत्ता आभरणालंकारं गेण्हइ, गेण्हित्ता देवदिन्नस्स दार गस्स सरीरं निप्पाणं निच्चेजें जीवविप्पजढं भग्गकूवए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मालुयाकच्छयं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता निच्चले निप्फंदे तुसिणीए दिवसं खवेमाणे चिट्ठइ। तए णं से पंथएं दासचेडए तओ मुहुत्तंतरस्स जेणेव देवदिन्ने दारए • ठविए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं तंसि ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ। देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुई वा खुइं वा पउत्तिं वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता.....पायवडिए धणस्स सत्थवाहस्स एयमढं निवेदेइ। तए णं से धणे सत्थवाहे पंथयस्स दासचेडगस्स एयमढं सोच्चा निसम्म तेण य महया पुत्तसोएणाभिभूए समाणे परसु-णियत्ते व चंपगपायवे 'धसत्ति' धरणीयलंसि सव्वंगेहिं सण्णिवइए। तए णं से धणे सत्थवाहे तओ मुहत्तंतरस्स आसत्थे पच्चागयपाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ। देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुई वा खुइं वा पउत्तिं वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छा । महत्थं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं पाहुडं उवणेइ, उवणेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! मम पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए देवदिन्ने
मुहूर्त भर पश्चात् दासपुत्र पंथक जहां बालक देवदत्त को बिठाकर गया था, वहां आया। देवदत्त को वहां न देख वह रोता, चिल्लाता हुआ चारों ओर बालक देवदत्त की खोज करने लगा। जब उसे बालक देवदत्त का कहीं भी कोई सुराख, चिह्न अथवा संवाद नहीं मिला तो वह लौटा। सार्थवाह धन के पास आया और उसके चरणों में गिरकर सारा वृत्तांत सुना दिया।
दासपुत्र पन्थक से यह सुन-समझ सार्थवाह धन पुत्रशोक से अत्यंत विह्वल हो उठा। वह कुल्हाड़ी से काटे गये चम्पक वृक्ष की भांति धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा।
मुहूर्त भर पश्चात् सार्थवाह धन आश्वस्त हुआ। चेतना लौटी। पुनः प्राण का संचार हुआ। उसने चारों ओर बालक देवदत्त की खोज प्रारंभ की। जब उसे बालक देवदत्त का कहीं भी कोई सुराख, चिह्न अथवा संवाद नहीं मिला तो वह घूमघाम कर अपने घर लौट आया।
वह मूल्यवान उपहार ले नगर-आरक्षकों के पास पहुंचा। उन्हें उपहार भेंट करते हुए बोला
देवानुप्रिय! मेरा प्रिय पुत्र देवदत्त जिसके दर्शन की तो बात ही क्या, नाम-श्रवण भी हमारे लिए उदम्बर पुष्प के