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________________ आत्मा का दर्शन ५५८ खण्ड-४ ४. छहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे आहारं वोच्छिंदमाणे श्रमण-निग्रंथ छह कारणों से आहार का परित्याग णातिक्कमति, तं जहा करता हुआ आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करताआतंके उवसग्गे, १. आतंक-ज्वर आदि आकस्मिक बीमारी हो जाने तितिक्खणे बंभचेरगुत्तीए। पर। पाणिदया-तवहेउं, २. राजा आदि का उपसर्ग हो जाने पर। सरीरखुच्छेयणट्ठाए॥ ३. ब्रह्मचर्य की तितिक्षा (सुरक्षा) के लिए। ४. प्राणीदया के लिए। ५. तपस्या के लिए। ६. शरीर का व्युत्सर्ग करने के लिए। धर्मसाधना और शरीर रक्षा ५. सिवसाहणेसु आहार-, आहार के बिना शरीर मोक्ष की साधना में प्रवृत्त नहीं विरहिओ जंन वट्टए देहो। हो सकता इसलिए साधु आहार से शरीर का वैसे ही तम्हा धणो व्व विजयं, पोषण करे जैसे धन श्रेष्ठी ने विजय चोर का पोषण साहू तं तेण पोसेज्जा॥ किया। सार्थवाह धन और विजय तस्कर ६. तए णं से पंथए दासचेडए देवदिन्नस्स दारगस्स सार्थवाह धन के घर पंथक नाम का एक दासपुत्र बालग्गाही जाए। देवदिन्नं दारगं कडीए गेण्हइ, रहता था। वह सार्थवाह धन के पुत्र देवदत्त को क्रीड़ा गेण्हित्ता बहहिं.....कमारएहि य कमारियाहि य करवाता था। जहां बहत से किशोर-किशोरियां क्रीडा सद्धिं संपरिखुडे अभिरमइ। करते, वहां प्रतिदिन उसे गोद में लेकर जाता। तए णं सा भद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ देवदिन्नं एक दिन सार्थवाह धन की पत्नी ने अपने पुत्र देवदत्त दारयं ण्हायं कयबलिकम्मं कयकोउय-मंगल- को स्नान करवाया। उसके काजल, तिलक, दिठौना आदि पायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करेत्ता लगाया। उसे सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित किया पंथयस्स दासचेडगस्स हत्थयंसि दलया। और दासपुत्र पंथक के हाथ में सौंप दिया। तए णं से पंथए दासचेडए भद्दाए सत्थवाहीए दासपुत्र पंथक ने भद्रा सार्थवाही के हाथ से बालक हत्थाओ देवदिन्नं दारगं कडीए गेण्हइ। गेण्हित्ता देवदत्त को अपनी गोद में भरा और घर से बाहर निकला। सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ।.....जेणेव राजमार्ग पर आया। बालक देवदत्त को एक ओर बिठाया रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं एगंते ठाडेइ. ठावेत्ता बहहिं डिभएहि य जाव कुमारियाहि य सद्धिं संपरिखडे पमत्ते यावि विहरइ। इमं च णं विजए तक्करे रायगिहस्स नगरस्स इधर विजय तस्कर राजगृह नगर के बहुत सारे बहूणि वाराणि य अववाराणि य सुन्नघराणि य ____ अपद्वारों और सूने घरों को देखता हुआ, उनकी मार्गणा आभोएमाणे मग्गेमाणे गवेसमाणे जेणेव देवदिन्ने और गवेषणा करता हुआ वहां आया जहां बालक देवदत्त दारए तेणेव उवागच्छइ। बैठा था। देवदिन्नं दारगं सव्वालंकारविभूसियं पासइ, उसने बालक देवदत्त को गहनों से लदा हुआ देखा। पासित्ता देवदिन्नस्स दारगस्स आभरणालंकारेस देखते ही वह उन आभरणों और अलंकारों में मूर्छित हो मुच्छिए। गया।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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