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________________ प्रायोगिक दर्शन ५५३ अ.९: धर्म ७४.जहा य तिन्नि वणिया मूलं घेत्तूण निग्गया। जैसे तीन वणिक् मूल पूंजी को लेकर निकले, उनमें ___ एगोऽत्थ लहई लाहं एगो मूलेण आगओ॥ से एक लाभ उठाता है। एक मूल लेकर लौटता है। ७५.एगो मूलं पि हारित्ता आगओ तत्थ वाणिओ। बवहारे उवमा एसा एवं धम्मे वियाणह॥ एक मूल को भी गंवाकर वापस आता है। यह व्यापार की उपमा है। इसी प्रकार धर्म के विषय में जानना चाहिए। ७६. माणुसत्तं भवे मूलं लाभो देवगई भवे। मूलच्छेएण जीवाणं नरगतिरिक्खत्तणं धुवं॥ मनुष्यत्व मूल धन है। देवगति लाभ रूप है। मल को खोने वाले प्राणी निश्चित ही नरक और तिर्यंच गति में जाते हैं। जयंती श्रमणोपासिका ने श्रमण भगवान महावीर के पास धर्म सुना, हृदयंगम किया, हर्षानुभूति की। श्रमण भगवान महावीर को वंदन-नमस्कार कर बोली-भंते! जीव भारी कैसे होता है ? श्राविका जयंती के प्रश्न : महावीर के उत्तर - ७७.तए णं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठ-तुट्ठा। समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-कहण्णं भंते! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति? जयंती! पाणाइवाएणं......जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति। . कहण्णं भंते! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति? जयंती! पाणाइवायवेरमणेणं.....जीवा लहयत्तं हव्वमागच्छंति। जयंती! प्राणातिपात आदि पापों के द्वारा जीव भारी होता है। भंते! जीव हलका कैसे होता है? जयंती! प्राणातिपात आदि पापों के विरमण से जीव हलका होता है। ७८.सुत्ततं भंते साहू! जागरियत्तं साहू ? .' जयंती! अत्थेगतियाणं जीवाणं सत्ततं साहू अत्थेगतियाणं जीवाणं जागरियत्तं साह। से केणठेणं भंते!.. जयंती! जे इमे जीवा अहम्मिया......एएसि णं जीवाणं सुत्तत्तं साहू। एए णं जीवा सुत्ता समाणा नो बहणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं दुक्खणयाए सोयणयाए जूरणयाए तिप्पणयाए पिट्टणयाए परियावणियाए वटंति। एएणं जीवा सुत्ता समाणा अप्पाणं वा 'परं वा तदुभयं वा नो बहूहिं अझम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति। एएसिणं जीवाणं सुत्ततं साहू। जयंती! जे इमे जीवा धम्मिया.....एएसिणं जी- वापं जागरियत्तं साहू। एए णं जीवा जागरा समाणा बहणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं भंते! सोना अच्छा है या जागना ? जयंती! कुछ जीवों का सोना अच्छा है, कुछ जीवों का जागना अच्छा है। भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है? जयंती! जो जीव अधार्मिक हैं उन जीवों का सोना अच्छा है। ये जीव सोए रहेंगे तो बहुत से प्राण-भूत-जीवसत्त्वों को दुःख नहीं देंगे, शोकाकुल नहीं करेंगे, खिन्न नहीं करेंगे, न उन्हें रुलाएंगे, न उन पर प्रहार करेंगे और न परितापित करेंगे। ये जीव सुप्त रहते हुए न स्वयं को, न दूसरे को और न दोनों को अधार्मिक संयोजना से संयोजित करेंगे। इसलिए उनका सोना अच्छा है। जयंती। जो जीव धार्मिक हैं उन जीवों का जागना अच्छा है। ये जीव जाग्रत रहते हुए बहुत से प्राण-भूतजीव-सत्त्वों को दुःख नहीं देंगे, शोक संतप्त नहीं करेंगे, न
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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