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________________ प्रायोगिक दर्शन ५४९ अ.९ : धर्म तितिक्षा का प्रयोग : मुनि अर्जुन का अभिग्रह ५९.तए णं से अज्जुणए अणगारे जं चेव दिवसं मुंडे मुनि अर्जुन जिस दिन मुनि बना, उसी दिन भगवान भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए तं चेव महावीर को वन्दन-नमस्कार कर बोला-भंते! मैं दिवसं समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता यावज्जीवन निरंतर बेल-बेले तप (दो दिन का उपवास) नमंसित्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं ओगेण्हइ-कप्पइ का अभिग्रह स्वीकार करना चाहता हूं। भगवान की मे जावज्जीवाए छठें छठेणं अणिक्खित्तेणं तवो- अनुज्ञा प्राप्त कर उसने अभिग्रह स्वीकार किया और बेले. कम्मेणं अप्पाणं भावेमाणस्स विहरित्तए ति बेले तप करने लगा। कद अयमेयारूवं अभिग्गहं ओगेण्हइ, ओगेण्हित्ता जावज्जीवाए छटठंछटठेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से अज्जुणए अणगारे छट्ठक्खमण- मुनि अर्जुन बेले-बेले तप के पारणे में प्रथम प्रहर में पारणयंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, स्वाध्याय करता, द्वितीय प्रहर में ध्यान करता, तृतीय बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए प्रहर के समय राजगृह नगर में भिक्षा के लिए जाता और रायगिहे नगरे उच्च-नीय-मन्झिमाइं कुलाइं उच्च, निम्न व मध्यम कुलों की सामुदायिक भिक्षा ग्रहण घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडइ। करता। तए णं तं अज्जुणयं अणगारं रायगिहे नगरे उच्च- मुनि अर्जुन जब भिक्षा के लिए राजगृह नगर के घरों नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खाय- में जाता तो स्त्रियां, पुरुष, बच्चे, बूढ़े और युवक इस रियाए अडमाणं बहवे इत्थीओ य पुरिसा य डहरा प्रकार कहते-इसने मेरे पिता को मारा है। इसने मेरी माता य महल्ला य जुवाणा य एवं वयासी-इमेण मे पिता को मारा है। मेरे भाई, बहिन, पत्नी, पुत्र, पुत्री और मारिए। इमेण मे माता मारिया। इमेण मे भाया पुत्रवधू इसके द्वारा मारे गए हैं। हमारे कौटुम्बिक जनों का भगिणी भज्जा पुत्ते धूया सुण्हा मारिया। इमेण मे हत्यारा भी यही है। इस प्रकार वे उसे कोसते। उसकी अण्णयरे सयणसंबंधि-परियणे मारिए त्ति कटु अवहेलना करते। निंदा करते। अवर्णवाद बोलते। गर्दा अप्पेगइया अक्कोसंति, अप्पेगइआ हीलंति निंदंति करते। तर्जना और ताड़ना देते। खिसंति गरिहंति तज्जति तालेति। तए णं से अज्जुणए अणगारे तेहिं बहूहिं इत्थीहि य मुनि अर्जुन उन लोगों द्वारा आक्रुष्ट और ताड़ित पुरिसेहि य....आओसिज्जमाणे जाव तालेज्जमाणे होता हुआ भी मन में किंचित् द्वेष नहीं करता। सम्यक् तेसिं मणसा वि अपउस्समाणे सम्मं सहइ सम्मं प्रकार से उन सबको सहता। उसे कहीं भोजन मिलता तो खमइ सम्मं तितिक्खइ सम्मं अहियासेइ, सम्मं पानी नहीं मिलता। कहीं पानी मिलता तो भोजन नहीं सहमाणे सम्मं खममाणे सम्मं तितिक्खमाणे सम्मं मिलता। अहियासेमाणे रायगिहे नयरे उच्च-णीय-मज्झिमकुलाई अडमाणे जइ भत्तं लभइ तो पाणं न लभइ, अह पाणं लभइ तो भत्तं न लभइ। तप समाधि के प्रकार १० तवेणं भंते! जीवे किं जणयइ? भंते! तप से जीव क्या प्राप्त करता है? तवेणं वोदाणं जणयइ। तप से जीव व्यवदान-पूर्व संचित कर्मों का क्षय कर विशुद्धि को प्राप्त होता है।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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