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________________ आत्मा का दर्शन देवाणुप्पिया ! अहमवि तुमए सद्धिं समणं भगवं महावीरं वंदित्तए जाव पज्जुवासित्तए । अहासु देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि । ५४८ तए णं से सुदंसणे समणोवासए अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धिं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धिं समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, वंदइ नमसइ जाव पज्जुवासइ । तए णं समणे भगवं महावीरे सुदंसणस्स समणोवासगस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स तीसे य महइमहालिया परिसाए मज्झगए विचित्तं धम्ममाइक्ख । सुदंसणे पडिगए । तणं से अज्जुणए मालागारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठ तुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदिता नमंसित्ता एवं वयासी - सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएम णं भंते! निग्गंथं पावयणं, अब्भुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं । अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि । खण्ड-४ को वन्दन-नमस्कार करने के लिए जाना चाहता हूं। उनकी उपासना करना चाहता हूं। देवानुप्रिय ! तुम स्वंतत्रतापूर्वक जैसा चाहो, वैसा करो । तए णं से अज्जुणए मालागारे उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जाव अणगारे जाए, से णं वासीचंदणकप्पे समतिणमणिलेट्ठकंचणे समदुखे इहलोग - परलोग - अप्पडिबद्धे जीविय - मरण- निरखकंखे निग्घायणट्ठाए एवं च णं विहरइ । संसारपारगामीकम्म श्रमणोपासक सुदर्शन मालाकार अर्जुन के साथ गुणसिलक चैत्य में श्रमण भगवान महावीर के पास आया । मालाकार अर्जुन के साथ श्रमण महावीर को दायीं ओर से प्रारंभ कर दायीं ओर तक तीन बार प्रदक्षिणा करते हुए वंदन-नमस्कार किया और उपासना में बैठ गया। भगवान महावीर ने श्रमणोपासक सुदर्शन, मालाकार अर्जुन एवं विशाल परिषद के बीच विविध प्रकार के धर्म का आख्यान किया। सुदर्शन प्रवचन सुन अपने घर चला गया। मालाकार अर्जुन ने महावीर से धर्म सुना। उसे हृदयंगम किया। प्रसन्न हो प्रदक्षिणापूर्वक तीन बार महावीर को वन्दन नमस्कार किया और बोला- भंते! मैं निग्रंथ प्रवचन पर श्रद्धा करता हूं, प्रतीति करता हूं, रूचि करता हूं। मैं इस निर्ग्रथ प्रवचन को स्वीकार करने के लिए उपस्थित हूं। देवानुप्रिय ! तुम स्वतंत्रता पूर्वक जैसा चाहो, वैसा करो । मालाकार अर्जुन ईशान कोण में गया। अपने हाथ से पंचमुष्टि लुंचन कर भगवान महावीर के पास मुनि बन गया। उसने महावीर के निर्देशानुसार समता की विशेष साधना प्रारंभ की। समता की साधना करते-करते वह स्थितात्मा की स्थिति तक पहुंच गया। उस अवस्था में भले कोई कुल्हाड़ी से काटे अथवा चंदन का लेप करे, वह सम हो गया। तृण और मणि, ढेला और स्वर्ण के विषय में उसकी समत्व बुद्धि जाग गई। वह सुख-दुःख में सम हो गया । इहलोक एवं परलोक के विषय में अप्रतिबद्ध हो गया। जीवन तथा मृत्यु से निरपेक्ष बन गया। संसार समुद्र का पार पाने के लिए समुद्यत वह कर्मक्षय के लिए विहार करने लगा।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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