SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 568
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रायोगिक दर्शन ५४७ जइ णं एत्तो उवसग्गाओ मुच्चिस्सामि तो मे कप्प पारेत्तए । अहण्णं एत्तो उवसग्गाओ न च्चिसाम तो मे तहा पच्चक्खाए चेव त्ति कट्टु सागारं पडिमं पडिवज्जइ । तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे तं पलसहस्सणिप्फण्णं अओमयं मोग्गरं उल्लालेमाणेउल्लालेमाणे जेणेव सुदंसणे समणोवासए तेणेव उवागए। नो चेव णं संचाएइ सुदंसणं समणोवासयं तेयसा समभिपडित्तए । तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे सुदंसणं समणोवासयं सव्वओ समंता परिघोलेमाणेपरिघोलेमाणे जाहे नो चेव णं संचाएइ सुदंसणं समणोवासयं तेयसा समभिपडित्तए ताहे सुदंसणस्स समणोवासयस्स पुरओ पक्खि सपडिदिसिं ठिच्चा सुदंसणं समणोवासयं अणिमिसाए दिट्ठीए सुचिरं निरिक्खई, निरिक्खित्ता अज्जुणयस्स मालागारस्स सरीरं विप्पजहs, विप्पजहित्ता तं पलसहस्सणिप्फण्णं अओमयं मोग्गरं गहाय जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए। तणं से अज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेणं विप्पमुक्के समाणे धस त्ति धरणियलंसि सव्वंगेहिं निवडिए । तणं से सुदंसणे समणोवासए निरुवसग्गमित्ति • कट्टु पडिमं पारे । तए णं से अज्जुणए मालागारे तत्तो मुहुत्तंतरेणं आसत्थे समाणे उट्ठेइ, उट्ठेत्ता सुदंसणं . समणोवासयं एवं वयासी - तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! के कहिं वा संपत्थिया ? तणं से सुदंसणे समणोवासए अज्जुणयं मालागारं एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! अहं सुदंसणे नामं समणोवासए अभिगयजीवाजीवे गुणसिलए चेइए समणं भगवं महावीरं वंद संपत्थिए । तएं णं से अज्जुणए मालागारे सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी-तं इच्छामि णं अ. ९ : धर्म यदि मैं इस उपसर्ग से मुक्त हो जाऊं तो मैं इन प्रत्याख्यानों से मुक्त हूं। यदि मैं इस उपसर्ग से मुक्त नहीं होता हूं तो मैंने जैसा प्रत्याख्यान किया, वह बना रहेगा। ऐसा कहते हुए उसने सागार कायोत्सर्ग प्रतिमा स्वीकार की । मुद्गरपाणि यक्ष लोहमय मुद्गर को आकाश में उछालता हुआ श्रमणोपासक सुदर्शन के पास आ पहुंचा। पर वह सुदर्शन को अपने तेज से अभिभूत न कर सका। मुद्गरपाणि यक्ष श्रमणोपासक सुदर्शन को सब प्रकार से विचलित करने का प्रयत्न करता हुआ भी जब उसे परास्त न कर सका तो सुदर्शन के ठीक सामने खड़ा होकर अनिमिष दृष्टि से उसे देर तक देखता रहा। तभी वह यक्ष मालाकार अर्जुन के शरीर को छोड़ लोहमय मुद्गर को ले जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में चला गया। मद्गरपाणि यक्ष के शरीर से बाहर होते ही मालाकार अर्जुन धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा। श्रमणोपासक सुदर्शन ने उपसर्ग को टला हुआ जान कायोत्सर्ग प्रतिमा सम्पन्न की। मुहूर्त्तभर पश्चात् मालाकार अर्जुन आश्वस्त हुआ। उसने खड़े होकर श्रमणोपासक सुदर्शन से कहादेवानुप्रिय ! तुम कौन हो ? कहां जा रहे हो ? सुदर्शन ने मालाकार अर्जुन से कहा- मेरा नाम सुदर्शन है। मैं श्रमणोपासक हूं। मैं जीव और अजीव आदि तत्त्वों को जानने वाला | मैं गुणसिलक चैत्य में भगवान महावीर को वन्दन करने के लिए जा रहा हूं। श्रमणोपासक सुदर्शन की बात सुन मालाकार अर्जुन ने कहा- देवानुप्रिय ! मैं भी तुम्हारे साथ भगवान महावीर
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy