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आत्मा का दर्शन
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खण्ड
३. सुहमकिरिए अणियट्टी
योग का परिवर्तन नहीं होता। ३. सूक्ष्यक्रियाअनिवृत्ति-जिसमें केवल श्वोसाच्छ
वास की सूक्ष्म क्रिया शेष रहती है, वह सूक्ष्म क्रिया-ध्यान है। इसमें निवृत्ति नहीं होती,
इसलिए अनिवृत्ति है। ४. समुच्छिन्नक्रियअप्रतिपाति-जिसमें श्वासोच्छवास की सूक्ष्मक्रिया भी समाप्त हो जाती है, वह समुच्छिन्नक्रिय ध्यान है। उसका पतन नहीं होता, इसलिए वह अप्रतिपाति है।
४. समुच्छिण्णकिरिए अप्पडिवाती।
शुक्ल ध्यान के चार लक्षण प्रज्ञप्त हैं
५३.सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा१. अव्वहे २. असम्मोहे
१. अव्यथ-क्षोभ का अभाव। २. असम्मोह-सूक्ष्म पदार्थ विषयक मूढ़ता का
अभाव। ३. विवेक-शरीर और आत्मा के भेद का बोध। ४. व्युत्सर्ग-शरीर और उपाधि के प्रति ममत्व का
विसर्जन।
३. विवेगे ४. विउस्सग्गे।
शुक्लध्यान के चार आलंबन प्रज्ञप्त हैं
५४.सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता, तं जहा१.खंती
२. मुत्ती ३. अज्जवे ४. महवे।
१. क्षमा ३. ऋजुता
२. निर्लोभता ४. मृदुता।
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भ..
५५.सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ, शुक्लध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं प्रज्ञप्त हैंपण्णत्ताओ, तं जहा१. अणंतवत्तियाणुप्पेहा
१. अनन्तवृत्तितानुप्रेक्षा-संसार परम्परा के
अनुचिंतन। २. विप्परिणामाणुप्पेहा
२. विपरिणाम अनुप्रेक्षा-वस्तुओं के विविध
___ परिणामों का अनुचिंतन। ३. असुभाणुप्पेहा
३. अशुभ अनुप्रेक्षा-पदार्थों की अशुभता का
____ अनुचिंतन। ४. अवायाणुप्पेहा।
४. अपाय अनुप्रेक्षा-राग-द्वेष आदि दोषों का
अनुचिंतन। ५६.अट्टरुहाणि वज्जित्ता झाएज्जा सुसमाहिए। सुसमाहित मुनि आर्त्त और रौद्रध्यान को छोड़कर धम्मसुक्काइं झाणाई झाणं तं तु बुहा वए॥ धर्म्य और शुक्ल ध्यान का अभ्यास करे। ज्ञानी पुरुषों ने
इसे ध्यान कहा है।