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प्रायोगिक दर्शन
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अ. ९ : धर्म
धर्म्य ध्यान के चार लक्षण प्रज्ञप्त हैं
१९.धम्मस्सणं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा१. आणाई २.णिसग्गरुई ३. सुत्तरुई
१. आज्ञा रुचि-अतीन्द्रिय विषय में रुचि होना। २. निसर्ग रुचि-सत्य में सहज रुचि होना। ३. सूत्र रुचि-संक्षिप्त पद्धति से सत्य के प्रति रुचि
होना। ४. अवगाढ़ रुचि-विस्तृत पद्धति से सत्य में रुचि
होना।
४. ओगाढरुई।
धर्म्य ध्यान के चार आलंबन प्रज्ञप्त हैं
५०.धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता, तं जहा१. वायणा २. पडिपुच्छणा ३. परियट्टणा ४. अणुप्पेहा।
१. वाचना-अध्यापन। २. प्रतिप्रच्छना-प्रश्न पूछना। ३. परिवर्तना-पुनरावर्तन। ४. अनुप्रेक्षा-अर्थ का अनुचिंतन।
धर्म्य ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं प्रज्ञप्त हैं
५१.धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- . १. एगाणुप्पेहा २. अणिच्चाणुप्पेहा
१. एकत्व अनुप्रेक्षा-अकेलेपन का अनुचिंतन। २. अनित्य अनुप्रेक्षा-पदार्थ की अनित्यता का
अनुचिंतन। ३. अशरण अनुप्रेक्षा-अशरण दशा का अनुचिंतन। ४. संसार अनुप्रेक्षा-जन्म-मरण के चक्र का
अनुचिंतन।
३. असरणाणुप्पेहा ४. संसाराणुप्पेहा।
शुक्लध्यान ५२.सुक्के झाणे चउविहे चउप्पडोआरे पण्णत्ते, तं
जहा
१. पुरुत्तवितक्के सवियारी
शुक्ल ध्यान चार पदों-स्वरूप, लक्षण, आलंबन और अनुप्रेक्षा में अवतरित होता है। उसके चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं१. पृथक्त्व वितर्क सविचारी-किसी एक वस्तु को
ध्येय बनाकर अन्य सभी पदार्थों से उसके भिन्नत्व में एकाग्र हो जाना। उसमें एक अर्थ से दूसरे अर्थ पर, एक शब्द से दूसरे शब्द पर, अर्थ से शब्द पर, शब्द से अर्थ पर एवं एक
योग से दूसरे योग पर परिवर्तन होता रहता है। २. एकत्व वितर्क अविचारी-सब पदार्थों के अभेद
बोध में एकाग्र हो जाना। इसमें शब्द, अर्थ और
२. एगत्तवितक्के अवियारी