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________________ प्रायोगिक दर्शन विनय ३९. अम्भुट्ठाणं अंजलिकरणं तवासणदायणं । गुरुभत्तिभावसुस्सूसा विणओ एस वियाहिओ ॥ वैयावृत्त्य ४०. आयरियमाइयम्मि य वेयावच्चम्मि दसविहे । आसेवणं जहाथामं वेयावच्चं तमाहियं ॥ ४१. दसविहे वेयावच्चे पण्णत्ते, तं जहा १. आयरियवेयावच्चे २. उवज्झायवेयावच्चे ३. थेरवेयावच्चे ४. तवस्सिवेयावच्चे ५. गिलाणवेयावच्चे ७. कुलवेयावच्चे ९. संघवेयावच्चे ६. सेहवेयावच्चे ८. गणवेयावच्चे १०. साहम्मियवेयावच्चे। स्वाध्याय ४२. वायणा पुच्छणा चेव तहेव परियट्टणा । अणुप्पेहा धम्मका सज्झाओ पंचहा भवे ॥ ४३. चत्तारि झाणा पण्णत्ता, तं जहा१. अट्टे झाणे ३. धम्मे झा ५४१ २. रोहे झाणे ४. सुक्के झाणे । आर्तध्यान ४४. अट्टे झाणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा१. अमणुण्ण-संपओग संपउत्ते, तस्स विप्पओगसति - समण्णागते यावि भवति । २. मणुण्ण - संप ओग - संपउत्ते, तस्स अविप्पओगसति समण्णागते यावि भवति । ३. आतंक - संपओग - संपउत्ते, तस्स विप्पओगसति समण्णागते यावि भवति । ४. परिजुसित कामभोगसंपओग - संपउत्ते, तस्स 'अविप्पओग-सति-समण्णागते यावि भवति । ध्यान खड़े होना, हाथ जोड़ना, आसन देना, गुरु की भक्ति करना और भावपूर्वक शुश्रूषा करना विनय तप है। आचार्य आदि से संबंधित दस प्रकार के वैयावृत्त्य का यथाशक्ति आसेवन करना वैयावृत्त्य तप है। वैयावृत्त्य के दस प्रकार प्रज्ञप्त हैं अ. ९ : धर्म १. आचार्य वैयावृत्त्य ३. तपस्वी वैयावृत्त्य ५. ग्लान वैयावृत्त्य ७. कुल वैयावृत्त्य ९. संघ वैयावृत्त्य २. उपाध्याय वैयावृत्त्य ४. स्थविर वैयावृत्त्य ६. शैक्ष वैयावृत्त्य ८. गण वैयावृत्त्य १०. साधर्मिक वैयावृत्त्य स्वाध्याय के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं १. वाचना - अध्यापन २. प्रच्छना - प्रश्न पूछना ३. परिवर्तना - पुनरावृत्ति ४. अनुप्रेक्षा- अर्थ का अनुचिंतन ५. धर्मकथा - धर्मोपदेश । ध्यान के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं १. आर्त्तध्यान ३. धर्म्यध्यान २. रौद्रध्यान ४. शुक्लध्यान । आर्त्तध्यान के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं १. अमनोज्ञ पदार्थ का संयोग होने पर उसके वियोग की चिंता में लीन रहना । २. मनोज्ञ पदार्थ का संयोग होने पर उसके वियोग न होने की चिंता में लीन रहना । ३. आतंक - सद्योघाती रोग होने पर उसके वियोग की चिंता में लीन रहना । ४. प्रीतिकर कामभोगों का संयोग होने पर वियोग न होने की चिंता में लीन रहना ।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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