SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 559
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मा का दर्शन ५३८ खण्ड-४ रसपरित्याग ३१.खीरदहिसप्पिमाई पणीयं पाणभोयणं। परिवज्जणं रसाणं तु भणियं रसविवज्जणं॥ दूध, दही, घृत आदि रसों तथा प्रणीत पान-भोजन का वर्जन रसपरित्याग है। कायक्लेश ३२.ठाणा वीरासणाईया जीवस्स उ सुहावहा। उग्गा जहा धरिज्जन्ति कायकिलेसं तमाहियं॥ आत्मा के लिए सुखकर वीरासन आदि उत्कट आसनों के अभ्यास का नाम कायक्लेश है। प्रतिसंलीनता ३३.से किं तं पडिसंलीणया? पडिसंलीणया चउम्विहा पण्णत्ता. तं जहाइंदियपडिसलीणया, कसायपडिसंलीणया, जोगपडिसंलीणया, विवित्तसयणासणसेवणया। प्रतिसंलीनता के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं१. इन्द्रिय प्रतिसंलीनता २. कषाय प्रतिसंलीनता ३. योग प्रतिसंलीनता ४. विविक्त शयनासन।' ३४.एगन्तमणावाए सयणासणसेवणया इत्थीपसुविवज्जिए। विवित्तसयणासणं॥ एकांत, आवागमनवर्जित और स्त्री-पशु आदि से रहित शयन और आसन का सेवन करना विविक्तशयनासन है। यह संलीनता का ही दूसरा नाम है। . आभ्यन्तर तप ३५.पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। झाणं च विउस्सग्गो, एसो अभिंतरो तवो॥ प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग-ये छह आभ्यन्तर तप हैं। . प्रायश्चित्त ३६.आलोयणारिहाईयं पायच्छित्तं तु दसविहं। जे भिक्ख वहई सम्मं पायच्छित्तं तमाहियं॥ आलोचनाह आदि जो दस प्रकार का प्रायश्चित्त है, जिसका भिक्षु सम्यक् प्रकार से पालन करता है, उसे प्रायश्चित्त कहा जाता है। ३७.दसविधे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा १. आलोयणारिहे २. पडिक्कमणारिहे ३. तदुभयारिहे ४. विवेगारिहे ५. विउस्सम्गारिहे ६. तवा- रिहे ७. छेयारिहे ८. मूलारिहे ९. अणवठ्ठप्पारिहे १०. पारंचियारिहे। प्रायश्चित्त के दस प्रकार प्रज्ञप्त हैं १. आलोचना-गुरु के समक्ष दोषों का निवेदन। २. प्रतिक्रमण-मेरा दुष्कृत निष्फल हो, इसका भावनापूर्वक उच्चारण। ३. तदुभय-आलोचना और प्रतिक्रमण। ४. विवेक-अशुद्ध आहार आदि का उत्सर्ग। ५. व्युत्सर्गकायोत्सर्ग। ६. तप-अनशन, ऊनोदरी आदि। ७. छेददीक्षा पर्याय का छेदन। ८. मूल-पुनर्दीक्षा। ए. अनवस्थाप्य तपस्यापूर्वक पुनर्दीक्षा। १०. पारंचितभर्त्सना एवं अवहेलनापूर्वक पुनर्दीक्षा।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy