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________________ आत्मा का दर्शन ५३६ खण्ड-४ आर्य! हम प्रत्याख्यान जानते हैं। प्रत्याख्यान का अर्थ जानते हैं। आर्य! हम संयम जानते हैं। संयम का अर्थ जानते हैं। . आर्य! हम संवर जानते हैं। संवर का अर्थ जानते हैं। आर्य! हम विवेक जानते हैं। विवेक का अर्थ जानते आर्य! हम व्युत्सर्ग जानते हैं, व्युत्सर्ग का अर्थ जानते वैश्यपुत्र कालास अनगार ने उन स्थविरों से इस प्रकार कहा-आर्य! यदि आप सामायिक जानते हैं, सामायिक का अर्थ जानते हैं यावत् व्युत्सर्ग जानते हैं, व्युत्सर्ग का अर्थ जानते हैं तो आर्य! आपकी सामायिक क्या है? सामायिक का अर्थ क्या है? यावत् व्युत्सर्ग क्या है? व्युत्सर्ग का अर्थ क्या है? जाणामो णं अज्जो! पच्चक्खाणं, जाणामो णं अज्जो! पच्चक्खाणस्स अट्ठ। जाणामो णं अज्जो! संजमं, जाणामो णं अज्जो! संजमस्स अट्ठ। जाणामो णं अज्जो! संवरं, जाणामो णं अज्जो! संवरस्स अळं। जाणामो णं अज्जो! विवेगं. जाणामो णं अज्जो! विवेगस्स अट्ठ। जाणामो णं अज्जो! विउस्सगं, जाणामो णं अज्जो! विउस्सग्गस्स अट्ठ। तते णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे ते थेरे भगवंते एवं वयासी-जइ णं अज्जो! तुब्भे जाणह सामाइयं, तुब्भे जाणह सामाइयस्स अट्ठ जाव जइ णं अज्जो! तुब्भे जाणह विउस्सगं, तुब्भे जाणह विउस्सग्गस्स अट्ठ। के भे अज्जो! सामाइए ? के भे अज्जो! सामाइयस्स अट्ठे? जाव के भे अज्जो! विउस्सग्गे? के भे अज्जो! विउस्सग्गस्स अठे? तए णं थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अणगारं एवं वयासीआया णे अज्जो! सामाइए, आया णे अज्जो! सामाइयस्स अट्ठे। आया णे अज्जो! पच्चक्खाणे, आया णे अज्जो! पच्चक्खाणस्स अट्ठे। आया णे अज्जो! संजमे, आया णे अज्जो! संजमस्स अट्ठे। आया णे अज्जो! संवरे, आया णे अज्जो! संवरस्स अठे। आया णे अज्जो! विवेगे, आया णे अज्जो! विवेगस्स अट्ठे। आया णे अज्जो! विउस्सग्गे, आया णे अज्जो! विउस्सग्गस्स अट्ठे। स्थविरों ने वैश्यपुत्र कालास अनगार से इस प्रकार कहा आर्य! आत्मा हमारे सामायिक है। आत्मा हमारे सामायिक का अर्थ है। आर्य! आत्मा हमारे प्रत्याख्यान है। आत्मा हमारे - प्रत्याख्यान का अर्थ है। ___ आर्य! आत्मा हमारा संयम है। आत्मा हमारे संयम का अर्थ है। ___ आर्य! आत्मा हमारा संवर है। आत्मा हमारे संवर का अर्थ है। आर्य! आत्मा हमारा विवेक है। आत्मा हमारे विवेक का अर्थ है। आर्य! आत्मा हमारा व्यत्सर्ग है। आत्मा हमारे व्युत्सर्ग का अर्थ है। २३. संजमेणं भंते! जीवे किं जणयइ? संजमेणं अणण्हयत्तं जणयइ। भंते! संयम से जीव क्या प्राप्त करता है? संयम से जीव अनास्रव को प्राप्त होता है-आश्रव के द्वारों को बन्द कर देता है।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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