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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-४
२९.वणस्सइकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
कालमणंतदुरंत समयं गोयम! मा पमायए।
वनस्पतिकाय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक दुरंत अनंत काल तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
द्वीन्द्रिय-काय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक संख्येयकाल तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तु क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
३०.बेइंदियकायमइगओ
उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखिज्जसन्नियं
समयं गोयम! मा पमायए॥ ३१. तेइंदियकायमइगओ
उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखिज्जसन्नियं
समयं गोयम! मा पमायए॥
त्रीन्द्रिय-काय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक संख्येयकाल तक वहां रह जाता है. इसलिए हे गौतम! तु क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
३२.चउरिदियकायमइगओ
उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखिज्जसन्नियं
समयं गोयम! मा पमायए।
चतुरिन्द्रिय काय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से . अधिक संख्येयकाल तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
३३.पंचिंदियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
सत्तट्ठभवग्गहणे समयं गोयम! मा पमायए॥
पंचेन्द्रिय काय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक सात-आठ जन्म-ग्रहण तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
३४.देवे नेरइए य अइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
इक्किक्क-भवग्गहणे समयं गोयम!मा पमायए॥
देव और नरकयोनि में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक एक-एक जन्म-ग्रहण तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
३५. एवं भवसंसारे संसरइ सुहासुहेहिं कम्मेहिं।
जीवो पमायबहुलो समयं गोयम! मा पमायए॥
इस प्रकार प्रमाद-बहुल जीव शुभ-अशुभ कर्मों द्वारा जन्म-मृत्युमय संसार में परिभ्रमण करता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
मनुष्य जन्म दुर्लभ है। उसके मिलने पर भी आर्य देश में जन्म पाना और भी दुर्लभ है। बहुत सारे लोग मनुष्य होकर भी दस्यु और म्लेच्छ होते हैं, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
३६.लखूण वि माणुसत्तणं
आरिअत्तं पुणरावि दुल्लहं। बहवे दसुया मिलेक्खुया
समयं गोयम! मा पमायए। ३७.लखूण वि आरियत्तणं
अहीणपंचिंदियया हु दुल्लहा। विगलिंदियया हु दीसई
समयं गोयम! मा पमायए।
आर्य देश में जन्म मिलने पर भी पांचों इन्द्रियों से पूर्ण स्वस्थ होना दुर्लभ है। बहुत सारे लोग इन्द्रियहीन दीख रहे हैं, इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।