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________________ प्रायोगिक दर्शन ५२५ अ.८: शिक्षा ३८.अहीण पंचिंदियत्तं पि से लहे पांचों इन्द्रियां पूर्ण स्वस्थ होने पर भी उत्तम धर्म की उत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा। श्रुति दुर्लभ है। बहुत सारे लोग कुतीर्थिकों की सेवा कुतित्थिनिसेवए जणे करनेवाले होते हैं, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी समयं गोयम! मा पमायए॥ प्रमाद मत कर। ३९.लखूण वि उत्तमं सुई सदहणा पुणरावि दुल्लहा। मिच्छत्तनिसेवए जणे समयं गोयम! मा पमायए॥ उत्तम धर्म की श्रुति मिलने पर भी श्रद्धा होना और अधिक दुर्लभ है। बहुत सारे लोग मिथ्यात्व का सेवन करनेवाले होते हैं, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। ४०.धम्म पि हु सहस्तया .दुल्लहया काएण फासया। इह कामगुणेहि मुच्छिया समयं गोयम! मा पमायए। उत्तम धर्म में श्रद्धा होने पर भी उसका आचरण करनेवाले दुर्लभ हैं। इस लोक में बहुत सारे लोग कामगुणों में मूर्छित होते हैं. इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। ४१.परिजूरह ते सरीरयं केसा पंडुरया हवंति ते। : से सव्वबले य हायई - समयं गोयम! मा पमायए। तेरा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश सफेद हो रहे हैं, और सब प्रकार का पूर्ववर्ती बल क्षीण हो रहा है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। १५२.अरई गंडं विसूइया आयंका विविहा फुसंति ते। विवडइ विद्धंसह ते सरीरयं समयं गोयम! मा पमायए॥ पित्त-रोग, फोड़ा-फुन्सी, हैजा और विविध प्रकार के शीघ्रघाती रोग शरीर का स्पर्श करते हैं, जिनसे यह शरीर शक्तिहीन और विनष्ट होता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। १३.वोच्छिंद सिणेहमप्पणो कुमुयं सारइयं व पाणियं। से सम्वसिणेहवज्जिए समयं गोयम! मा पमायए। जिस प्रकार शरद्-ऋतु का कुमुद (रक्त-कमल) जल में लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार तु अपने स्नेह का विच्छेद कर निर्लिप्त बन। हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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