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प्रायोगिक दर्शन
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अ.८: शिक्षा
अप्रमाद का शिक्षण २१.दुमपत्तए पंडुयए जहा
रात्रियां बीतने पर वृक्ष का पका हुआ पान जिस प्रकार निवडइ राइगणाण अच्चए। गिर जाता है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन एक दिन एवं मणुयाण जीवियं
समाप्त हो जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी समयं गोयम! मा पमायए॥ प्रमाद मत कर।
२२.कुसग्गे जह ओसबिंदुए
थोवं चिट्ठइ लंबमाणए। एवं मणुयाण जीवियं
समयं गोयम! मा पमायए॥
कुश की नोक पर लटकते हुए ओस-बिन्दु की अवधि जैसे थोड़ी होती है, वैसे ही मनुष्य जीवन की गति है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
२३.इइ इत्तरियम्मि आउए
जीवियए बहुपच्चवायए। विहुणाहि रयं पुरे कडं
समयं गोयम! मा पमायए॥
यह आयुष्य क्षण-भंगुर है। यह जीवन विघ्नों से भरा हुआ है, इसलिए हे गौतम! त पूर्व-संचित कर्म-रज को प्रकंपित कर। क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
२४.दुल्लहे खलु माणुसे भवे
चिरकालेण वि सव्वपाणिणं। गाढा य विवागकम्मुणो,
समयं गोयम! मा पमायए॥
सब प्राणियों को चिरकाल तक भी मनुष्य-जन्म मिलना दुर्लभ है। कर्म के विपाक तीव्र होते हैं, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
२५.पुढविक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे। . कालं संखाईयं समयं गोयम! मा पमायए॥
पृथ्वीकाय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक असंख्य काल तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
अप्काय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक असंख्य काल तक वहां रह जाता है. इसलिए हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
२६.आउक्कायमइगओ
उक्कोसं जीवो उ संवसे। - कालं संखाईयं
समयं गोयम! मा पमायए॥ २७.तेउक्कायमइगओ
. उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखाईयं समयं गोयम! मा पमायए॥
तेजस्काय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक असंख्य काल तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
२८.वाउक्कायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे।
कालं संखाईयं समयं गोयम! मा पमायए।
वायुकाय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक असंख्य काल तक वहां रह जाता है, इसलिए हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।