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________________ प्रायोगिक दर्शन ५२१ अ.८: शिक्षा तेण य ‘चिंतितं-भगिणीणं इड्ढिं दरिसेमित्ति भद्रबाहु-इसी देवकुल में परावर्तन कर रहा है। स्थूलभद्र ने सीहरूवं विउव्वितं। ताओ सीहं पेच्छंति। ताउ चेव आती हुई बहिनों को देखा। उन्होंने सोचा-बहिनों को भीता नट्ठाओ। भणंति-सीहेण खइओ। अपनी ऋद्धि दिखाऊं और सिंह का रूप बना लिया। आयरिएणं भणितं-ण सो सीहो। थूलभहो। जाह साध्वियों ने सिंह को देखा। वे डरकर लौट आईं। आचार्य इदाणि। ताहे गताओ। वंदिओ य। खेमकुसलं से बोलीं-स्थूलभद्र को सिंह खा गया। भद्रबाहु बोले-वह पुच्छति। जथा सिरिओ पव्वइतो अब्भत्तठेणं सिंह नहीं है, स्थूलभद्र है, पुनः जाओ। साध्वियां आई। कालगतो। महाविदेहे य पुच्छिका गता अज्जा। स्थूलभद्र को वंदन किया। कुशल-क्षेम पूछा। उन्होंने दोवि अज्झयणाणि भावणा विमोत्ती य अणिताणि श्रीयक की दीक्षा का वृत्तांत सुनाया। उपवास में उसका वंदित्ता गताओ। स्वर्गवास हो गया। हमारे मन में संदेह हो गया कि हमने आहार नहीं करने दिया, इसलिए उसकी मृत्यु हो गई। देवता हम दो साध्वियों को महाविदेह में ले गए। हमने तीर्थंकर से पूछा संदेह निवृत्त हो गया। वहां हमें दो अध्ययन-भावना और विमुक्ति प्राप्त हुए। इस प्रकार वार्तालाप कर वे चली गईं। बितियदिवसे · उद्देसणकाले उवठितो। न दूसरे दिन वाचना के समय स्थूलभद्र भद्रुबाहु के उदिसंति। किं कारणं? अजोगो। तेण जाणितं सामने उपस्थित हुए। भद्रबाहु ने वाचना नहीं दी। कल्लत्तणकं। भणति-ण कहामि। स्थूलभद्र ने सोचा, क्या कारण है जिससे मुझे वाचना के योग्य नहीं माना। उन्होंने इस पर ध्यान केन्द्रित किया और जाना-इसका कारण कल की घटना है। वे बोले-मैं भविष्य में ऐसा नहीं करूंगा। . भणति-ण तुमं काहिसि। अण्णे काहिंति। पच्छा ___भद्रबाहु बोले-तुम नहीं करोगे, पर दूसरे कर लेंगे। महता किलेसेण पडिवण्णा उवरिल्लाणि चत्तारि बहुत प्रार्थना करने पर बड़ी कठिनाई से वाचना देना पुव्वाणि पढाहि। मा अण्णस्स देज्जासि। स्वीकार किया। उन्होंने स्थूलभद्र से कहा-अवशिष्ट चार पूर्व तुम पढ़ो, पर दूसरों को उनकी वाचना नहीं दोगे। ते चत्तारि ततो वोच्छिण्णा। दसमस्स य दो स्थूलभद्र के बाद अंतिम चार पूर्व विच्छिन्न हो गए। पच्छिमाणि वत्थूणि वोच्छिण्णाणि। दस पुव्वाणि दसवें पूर्व की अंतिम दो वस्तुएं भी विच्छिन्न हो गईं। दस अणुसज्जति। पूर्व की परम्परा उनके बाद भी चली। वाचना के अयोग्य १३.चत्तारि अवायणिज्जा पण्णत्ता, तं जहा चार अवाचनीय-वाचना देने के अयोग्य होते हैं१. अविणीए २. विगइपडिबद्धे ३. अविओस- १. अविनीत २. लोलुप ३. अव्यवशमित प्राभृतवितपाहुडे ४. माई। कलह का उपशमन नहीं करने वाला ४. मायावी। वाचना के योग्य १४.चत्तारि वायणिज्जा पण्णत्ता, तं जहा चार वाचनीय-वाचना देने के योग्य होते हैं१. विणीते २. अविगतिपडिबुद्धे ३. विओसवित- १. विनीत २. अलोलुप ३. व्यवशमित प्राभृत-कलह ___पाहुडे ४. अमाई। का उपशमन करने वाला ४. अमायावी। १. आयारचूला के दो अध्याय।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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